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भाकपा (माले) का चुनाव घोषणापत्र जारी, छह वाम दल जनता के मुद्दों पर साझा संघर्ष करेंगे

communist marxistलखनऊ, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने गुरुवार को उ.प्र. विधानसभा चुनाव के लिए अपना चुनाव घोषणापत्र जारी कर दिया। पार्टी के राज्य सचिव रामजी राय ने चुनाव घोषणापत्र जारी करते हुए कहा कि प्रदेश में पहली बार भाकपा (माले) समेत छह वाम दलों ने जनता के मुद्दों पर साझा संघर्ष करने और जिस हद तक संभव हो मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है।

माले के 18 पृष्ठों वाले घोषणापत्र में केन्द्र में ढाई साल से चल रही सरकार की समीक्षा करते हुए कहा गया है कि भाजपा नोटबन्दी समेत सारे हथकण्डों को फेल होती देख फिर से साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कराकर प्रदेश की सत्ता हथियाने के आजमाये रास्ते की ओर बढ़ रही है। वह फर्जी राष्ट्रवाद भड़काने, कैराना पर अफवाहबाजी करने, मुजफ्फरनगर दंगे की सीडी चलवाने से लेकर राममंदिर बनवाने को फिर से हवा दे रही है।

घोषणापत्र में अखिलेश यादव सरकार के भी पांच साल की खबर लेते हुए कहा गया है कि इस दौरान अपराध और कमजोर वर्गों पर हमले बढ़े। किसानों, नौजवानों व अल्पसंख्यकों से समाजवादी पार्टी ने धोखा किया। अखिलेश शासन में सपा-भाजपा नूरा कुश्ती के चलते मुजफ्फरनगर जैसा भीषण दंगा हुआ, प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव-हिंसा की दर्जनों घटनाएं हुईं, दादरी में अखलाक की हत्या कर दी गई, लेकिन दंगाई ताकतों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का एक भी उदाहरण सामने नहीं आया। घोषणापत्र में सपा-कांग्रेस गठजोड़ को अवसरवादी बताते हुए कहा गया है कि यह चुनावी गठबंधन दोनों दलों के जनविरोधी कारनामों पर परदा नहीं डाल सकेगा।

माले घोषणापत्र में बहुजन समाज पार्टी पर प्रहार करते हुए कहा गया है कि जुबानी जमाखर्च के अलावा वह कहीं भी दलितों-गरीबों के अधिकारों के लिए संघर्ष में सड़कों पर नहीं दिखी। अभी तक सूबे की 35 सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी भाकपा (माले) ने घोषणापत्र में जनता से जुड़े मुद्दों व मांगों का 27 बिंदुओं में उल्लेख करते हुए मतदाताओं से वादा किया है कि चुने जाने पर उसके प्रतिनिधि उन्हें पूरा कराने के लिए विधानसभा के अंदर व बाहर संघर्ष करेंगे। इनमें नोटबंदी से हुए नुकसान का मुआवजा दिलाना, सभी को सस्ता व गरीबों को मुफ्त राशन, भूख से मौत पर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई, सबके लिए समान स्कूल प्रणाली, ग्रामीण क्षेत्रों तक समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, रोजगार व भरण-पोषण के अधिकार के लिए कानून बनाना, सभी मानदेय कर्मियों को राज्यकर्मी का दर्जा और नियमित कामों में लगे मजदूरों को नियमित कर्मियों के समकक्ष वेतन दिलाना शामिल है। इसके अलावा, सांप्रदायिक हिंसा को रोकने में अक्षम रहने वाले राजनीतिक व सरकारी प्राधिकारियों की जवाबदेही तय करने के लिए कानून, जातीय भेदभाव व हिंसा के विरुद्ध कानून, दलितों-आदिवासियों पर हमला करने वालों के खिलाफ कड़ी कारवाई, महिला आजादी की रक्षा व ऑनर किलिंग पर रोक, भ्रष्ट अधिकारियों को सजा, बिना पूर्व सहमति के भूमि अधिग्रहण पर रोक, बटाईदार किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए कानून, भूमिहीनों को आवास व खेती के लिए जमीन, दिमागी बुखार को गोरखपुर जोन में महामारी घोषित करना, अभावग्रस्त इलाकों में पेयजल की उपलब्धता व पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दे भी शामिल हैं।

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