वाराणसी, शहनाई के शंहशाह भारत रत्न मरहूम उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को उनकी 102 वीं जयंती पर मंगलवार को परिजनों के साथ प्रशंसको ने शिद्दत से याद किया। सुबह से ही उनके फातमान स्थित कब्र पर परिजनो के साथ लोगों ने अकीदत के फूल चढ़ाये। इस दौरान उस्ताद बिस्मिल्लाह खां फाउंडेशन के प्रवक्ता शकील अहमद जादूगर, उस्ताद के बेटे जामिन हुसैन और अन्य परिजनों सहित अब्बास मुर्तजा शम्सी आदि ने खिराजे अकीदत भी पेश किया।
21 अगस्त 2006 को लम्बी बीमारी के बाद जब उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का इन्तकाल हुआ था। तब देश के तत्कालीन राष्ट्रपति अब मरहूम एपीजे अब्दुल कलाम की मौजूदगी में उन्हें 21 तोपों की सलामी के बाद दरगाह-ए-फातमान में सुपूर्दे-खाक किया गया था। उस समय प्रशासनिक अधिकारी ही नहीं बल्कि केन्द्र और प्रदेश सरकार के तमाम नुमाइंदे उन्हें खिराजे अकीदत पेश करने पहुंचे थे। डर्बी शायर क्लब के अध्यक्ष उस्ताद बिस्मिल्लाह खां फाउंडेशन के प्रवक्ता शकील अहमद जादूगर ने बताया कि कभी एक अमेरिका पूंजीपति ने उस्ताद को अमेरिका में बस जाने का न्योता दिया था, जिसे यह कहते हुए उन्होंने नकार दिया कि मेरा बनारस यहां बसा दो, गंगा बहा दो मैं खुद-ब-खुद यहां बस जाउंगा। बताया कि उस्ताद ने हमेशा फकीरी की जिन्दगी अख्तियार किया अगर वो चाहते तो खूब ऐशो-आराम से रह सकते थे मगर उन्होंने कला की साधना की और उसी हाल में दुनिया से रुख़्सत हुए। जब वो थे तो भी शहनाई के उस्ताद वही थे आज वो नहीं हैं फिर भी शहनाई के सम्राट है।