मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर जिले के मझवां विधानसभा उपचुनाव में राजनीतिक दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है। इस चुनाव में भी प्रदेश की दो परम्परागत प्रतिद्वंद्वी भाजपा और सपा आमने-सामने दिख रही है।
दोनों दल कोई कोर कसर नही छोड़ी हैं।सपा को यहां अपना खाता खोलना है। यहां वह कभी जीत हासिल नहीं की है।भाजपा को अपनी सीट को बरकरार रखने की चुनौती है।
भाजपा और सपा की ओर जातीय समीकरण के हिसाब से उस जाति के नेताओं को दरवाजे दरवाजे टहलाया है। मतदाताओं को रोज नए विधायक सांसद मंत्रियों एवं पूर्व मंत्रियों के फार्मूले सुनने पड़ें हैं । इस मामले में भाजपा आगे दिख रही है। उसने छोटी बड़ी जाति के लिए अलग-अलग विधायक मंत्री लगा दिया है। हालत यह कि कैबिनेट मंत्री तक को सौ पचास मतदाताओं के सामने सभा करनी पड़ रही है। भाजपा सूत्रों के अनुसार प्रतिदिन दो से तीन मंत्री यहां प्रचार में रह रहे हैं। विधायको एवं सांसदों की कोई सीमा नहीं है। इस मामले में सपा भाजपा से थोड़ी ही कम है ।
यही हाल समाजवादी पार्टी का भी है। जितनी जाति उस जाति के नेता पूरे विधानसभा में डटे रहे ।चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में अखिलेश यादव फिजा बनाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी। तो प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक सप्ताह के अंदर दो बार यहां सभा की है। इससे पहले कभी नही हुआ है।
असल में इस विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण,बिंद और दलित की संख्या सर्वाधिक है।सपा बिंद के साथ अपने एम वाई फार्मूला के सहारे है। अन्य पिछड़ी जातियों के साथ दलित वोट मे सेंध ही उसकी नैया पार लगा सकती है।वही भाजपा को ब्राह्मण और अन्य अगड़ी जातियों के साथ मौर्या और दलित वोट की आवश्यकता है।यह अंकगणित दोनों दलों को मालूम है। लिहाजा इसी समीकरण को दृष्टिगत योजना को मूर्त रूप दिया जा रहा है।
उधर बसपा उम्मीदवार समीकरण के लिहाज से सबसे मजबूत दिख रही है।दो बड़ी जातियों के मिलने से चौंकाने वाला परिणाम हो जाता रहा है। पर भौतिक धरातल पर ऐसा नहीं है। बसपा को गम्भीरता से नही ले रहे हैं। ऐसा बसपा की राष्ट्रीय स्तर पर स्थित के कारण है। पिछले चुनावों में यह सीट निषाद पार्टी के खाते में थी।तब विनोद बिंद भारी मतों से विजई हुए थे। पर पिछले लोकसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी रही अनुप्रिया को मात्र 1700वोटो की बढत मिली थी। यही सपा कार्यकर्ताओं को संजीवनी दे रही है। तो भाजपा के लिए डर है। एक और स्थिति भाजपा कार्यकर्ताओं में थोड़ा उत्साह की कमी है।वही सपाई किला फतह करने वाला जोश भी नही दिख रहा है। दोनों दलो के कार्यकर्ता उपर से लगे दिखते हैं।
फिलहाल लड़ाई भाजपा सपा के बीच ही सीमट गई है।दोनो दलो नेकोई कोर कसर बाकी नहीं रखी है। दो दिन बाद बीस को मतदान है। मतदान केंद्र तक मतदाओ को पहुंचाने वाली पार्टी जीतेगी इससे किसी को इंकार नहीं है।