बिहार में चुनाव बीच का दौर पार कर गया है। मतदान के पांच दौर मे दो दौर अभी और बाकी हैं। जीत-हार का पता तो 8 नवंबर को लगेगा लेकिन चुनाव के प्रारंभ से लेकर अगर अब तक के सफर पर नजर डालें तो काफी कुछ बदल चुका है। वैसे तो बिहार चुनाव के प्रारंभ मे लग रहा था कि भाजपा का पलड़ा भारी है, और जैसे भाजपा ने हरियाणा, महाराष्ट, जम्मू कष्मीर राज्यों के चुनाव जीत लिये वैसे ही बिहार चुनाव भी जीत जायेंगे। भारतीय जनता पार्टी के सहयोगियों में एकता के साथ-साथ इस बात का भरोसा भी था कि जीत उनकी राह में पलक-पांवड़े बिछा कर बैठी है। एनडीए के रणनीतिकारों को बहुत यकीन था कि लालू और नीतीश के वोट एक दूसरे को नहीं मिलेंगे। लेकिन हुआ उल्टा, 84 सीटें सहयोगियों को देने के बाद भी, भाजपा न अपने सहयोगियों को संतुष्ट कर पाई, न अपने कार्यकर्ताओं को ही मना पायी। इधर महागठबंधन ने धारणाओं को झूठा साबित करते हुये सारी सीटों की घोषणा एक बार मे एक साथ करके आपसी एकता दिखाने मे कामयाबी पायी। लालू-नीतीश के बीच यह समझ जमीनी तौर पर भी चुनाव मे नजर आने लगी। चुनाव प्रचार शुरू हुआ तो एनडीए की कमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संभाली। नरेंद्र मोदी सलामी बल्लेबाज की तरह आए और लगातार चार सभाएं की। विकास की बात करते हुये विशेष पैकेज के बारे में प्रधानमंत्री ने सीधे रैली मे पूछा कि बिहार के लिये कितने पैसे चाहिये? लेकिन इस पैकेज को नीतीश कुमार ने रीपैकेजिंग करार दिया वहीं लालू ने नरेन्द्र मोदी के पैसा पूछने के अंदाज को बिहारियों का अपमान बताया। भाजपा नेताओं ने पिछले 25 साल के लिए लालू और नीतीश से हिसाब मांगना शुरू किया और लालू को जंगलराज पर घेरना शुरू किया। लालू ने जंगलराज का जवाब यह कहकर दिया कि यह जंगलराज नही बल्कि मंडलराज पार्ट-2 हैं।
इस बीच, 20 सितंबर को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा आरक्षण की समीक्षा किये जाने वाला बयान आ गया। लालू प्रसाद ने इस बयान की गंभीरता को समझा और इसे लोगों के बीच ले गए। इसी बीच बीफ का मुद्दा भी आया जिस पर बयान देकर लालू प्रसाद फंसते दिखाई दिए लेकिन समय रहते लालू प्रसाद ने खुद की गलती सहजता से स्वीकार की और अपने मूल मुद्दे आरक्षण पर नरेन्द्र मोदी को घेरना षुरु किया। भाजपा षायद उस समय तक आरक्षण पर दिये बयान की गंभीरता को नही भांप पायी थी। पहले और दूसरे चरण के मतदान से पहले तक प्रधानमंत्री ने अपनी रैलियों में आरक्षण का जिक्र तक नहीं किया। तब तक भाजपा का जो नुकसान होना था वो हो चुका था।
मध्य दौर पार करते करते बिहार चुनाव की रंगत बदल गई। भाजपा के खेमे में सब वैसा नहीं रहा, जैसे शुरू में था। भाजपा के सुर बदलने लगे, दूसरे राउंड का मतदान खत्म होते-होते प्रधानमंत्री को पिछड़ा बताया जाने लगा। आरक्षण विरोध से दो चरणों के मतदान मे हुये नुकसान को भांपकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आखिर कहना पड़ा कि आरक्षण हर हाल में जारी रहेगा और वे जान देकर भी उसे कायम रखेंगे। षायद यह नरेन्द्र मोदी की पहली बड़ी चूक और महागठबंधन की पहली बड़ी कामयाबी थी कि मंडल कमंडल की इस लड़ाई मे आखिर लालू प्रसाद ने नरेन्द्र मोदी को आरक्षण के मुद्दे पर न केवल घेर लिया बल्कि अपनी बात विपक्षी के दिलो दिमाग मे उतार दी और अपने मुद्दे पर प्रधानमंत्री को बोलने के लिये मजबूर कर दिया।
इस बीच, भाजपा ने आरक्षण पर प्रेस रिलीज जारी कर आरक्षण पर सफाई दी और कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डाक्टर मोहन भागवत ने आरक्षण के संबंध में जो विचार दिया था, उसे तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया जा रहा है। इस बीच, भाजपा की ओर से यह बयान भी आने लगे कि बिहार चुनाव के नतीजे केंद्र की एनडीए सरकार के कामकाज पर जनमत संग्रह नहीं माने जा सकते हैं। इधर प्रधानमंत्री ने एकबार फिर दम बांधते हुये आक्रामक मुद्रा मे नीतीश-लालू पर पिछड़ों, अति पिछड़ों और दलितों के आरक्षण में से 5 फीसदी दूसरे धर्म को देने की साजिश करने का आरोप लगाया। इसपर, लालू प्रसाद ने जवाब दिया कि प्रधानमंत्री आरक्षण में भी साम्प्रदायिकता का जहर घोल रहें हंै। जो कि मोदी पर भारी पड़ गया। नरेन्द्र मोदी को आरक्षण के मुद्दे पर घिरता देख भाजपा अध्यक्ष अमित षाह उनके सहयोग मे उतर आये। अमित षाह ने हड़बड़ी मे एक और विवादित बयान दे डाला। अमित षाह ने कहा कि यदि भाजपा हारी तो पटाखे पाकिस्तान में फूटेंगे। लालू प्रसाद भला विरोधियों की ऐसी गलती पर कहां चूकने वाले थे। उन्होने अमित षाह के इस बयान को बिहार के लोगों की अस्मिता से जोड दिया। लालू प्रसाद ने कहा कि अमित षाह ने पूरे बिहार के लोगों को पाकिस्तानी बताकर बिहारियों का अपमान किया है। लालू ने छक्का जड़ते हुये कहा कि बिहारी भाजपा द्वारा किये गये इस अपमान का मंुहतोड़ जवाब मतदान के समय देंगे।
ये तो सच है कि महज नरेन्द्र मोदी ही नही पूरी एनडीए मंडलराज पार्ट-2 के चक्रव्यूह मे फंस चुकी है। बिहार चुनाव इस समय सबसे महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहा है। इस समय किसी भी दल द्वारा की गई छोटी सी गलती उसे जीत से कोसों दूर ले जा सकती है। इसके बावजूद भाजपा द्वारा लगातार घटिया, विवादित बयान दिया जाना क्या उनकी रणनीति का हिस्सा है या फिर मण्डल के चक्रव्यूह में फंस जाने और उससे न निकल पाने की बौखलाहट?
– अनुराग यादव