लखनऊ, मुजफफरनगर दंगों पर न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट आज उत्तर प्रदेश विधानसभा में पेश कर दी गई है। मुजफ्फरनगर दंगों की जांच करने वाली जस्टिस विष्णु सहाय कमीशन ने दंगों के लिए अखिलेश यादव सरकार को क्लीन चिट दे दी है, लेकिन इसके लिए प्रशासन, पुलिस और इंटेलिजेंस तीनों को जिम्मेदार माना है। दंगे भड़कने के लिए कुछ सियासी पार्टियों के नेताओं और अफवाहें फैलाने के लिए अखबारों और सोशल मीडिया को जिम्मेदार माना गया है।इस रिपोर्ट में दंगों के लिए खुफियातंत्र की असफलता को जिम्मेदार ठहराया गया। 700 पन्नों की इस रिपोर्ट के मुताबिक तत्कालीन मुजफ्फरनगर एसएसपी और स्थानीय खुफिया इंस्पेक्टर को दोषी माना गया है।मे
उस समय वहां पर एसएसपी सुभाष चंद्र दूबे और स्थानीय खुफिया इंस्पेक्टर प्रबल प्रताप सिंह थे। इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई है। एडीजी अधिसूचना से सफाई मांगी गई है। उल्लेखनीय है कि 7 सितंबर 2013 को मुजफ्फरनगर में दंगा हुआ था जिसकी जांच के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस विष्णु सहाय की अध्यक्षता में जांच कमेटी गठित की गई थी।
रिपोर्ट में कहा गया कि मुजफ्फरनगर दंगों की शुरुआत कवाल गांव से हुई। 27 अगस्त 2013 को यहां मुस्लिम युवक शाहनवाज और दो हिंदू युवक सचिन और गौरव की हत्या कर दी गई थी, जिसके बाद हिंदू और मुस्लिमों का ध्रुवीकरण हुआ और सांप्रदायिक दंगे हुए। इस मामले में 8 लोगों (मुस्लिम) को हिरासत में लिया गया। उस समय मुजफ्फरनगर के डीएम सुरेंद्र सिंह और एसएसपी मंजिल सैनी थीं। बाद में दोनों अफसरों का तबादला कर दिया गया। आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक तबादले के बाद हिंदू समुदाय के लोगों में आक्रोश फैल गया, क्योंकि हिरासत में लिए लोगों को छोड़ दिया गया था। इससे हिंदुओं में संदेश गया कि प्रदेश सरकार और प्रशासन मुस्लिमों की पक्षधर है और उन्हीं के प्रभाव में काम कर रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक 7, सितम्बर 2013 को दंगों वाले दिन स्थानीय अभिसूचना इकाई के तत्कालीन निरीक्षक प्रबल प्रताप सिंह द्वारा मुजफ्फरनगर के मण्डौर में आयोजित महापंचायत में शामिल होने जा रहे लोगों की संख्या की सही खुफिया रिपोर्ट नहीं दे पाने, महापंचायत की रिकार्डिंग ना किए जाने तथा तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुभाष चन्द्र दुबे की ढिलाई और नाकामी के कारण मुजफ्फरनगर में दंगे हुए जिनकी आग सहारनपुर, शामली, बागपत तथा मेरठ तक फैली।
700 पन्नों की इस रिपोर्ट में तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के निलम्बन और विभागीय जांच की कार्यवाही से सहमति व्यक्त करते हुए उस वक्त मुजफ्फनगर के जिलाधिकारी रहे कौशल राज शर्मा को भी जिम्मेदार मानते हुए उनसे नगला मण्डौर में आयोजित महापंचायत के मद्देनजर कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए की गई व्यवस्थाओं तथा महापंचायत की वीडियोग्राफी ना कराये जाने के बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
रिपोर्ट में मीडिया को भी कठघरे में खड़ा किया गया है। आयोग का मानना है कि मीडिया ने दंगों से सम्बन्धित घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर रिपोर्टिंग की और अफवाहें भी फैलाईं। कुछ खबरों ने तो दंगों को भड़काया भी।आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सोशल मीडिया और प्रिंट मीडिया दंगे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया। इसकी वजह से हालात और ज्यादा खराब हो गए। मीडिया ने अपने कर्तव्यों का सही से पालन नहीं किया। मीडिया अपने दायित्वों से बच नहीं सकता लेकिन सोशल या प्रिंट मीडिया को दंगों के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता। दंगों को लेकर एक झूठे स्टिंग के शिकार मंत्री आजम खान चाहते हैं कि रिपोर्ट में मीडिया के रोल पर और विस्तृत बातें शामिल होनी चाहिए थी। रिपोर्ट में बीजेपी एमएलए संगीत सोम पर फर्जी वीडियो शेयर कर दंगा भड़काने और दूसरे नेताओं पर भड़काऊ भाषण देने के इल्जाम हैं। दंगों के आरोपी बीजेपी एमएलए सुरेश राणा कहते हैं कि उनके खिलाफ इल्जाम झूठे हैं।
मुजफ्फरनगर में सितम्बर 2013 को हुए साम्प्रदायिक दंगों में कम से कम 62 लोग मारे गए थे तथा सैकड़ों अन्य घायल हो गए थे। इन दंगों की आग शामली, सहारनपुर, बागपत तथा मेरठ तक फैल गई थी। सरकार ने दंगों से पहले हुए कवाल काण्ड से लेकर 9 सितम्बर, 2013 तक घटित घटनाओं की जांच के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश विष्णु सहाय की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया था।