नई दिल्ली, नए सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत को सेना की कमान सौंपने को लेकर सत्ताधारी दल और विरोधियों के बीच तलवार खींच गई है। जहां एक तरफ कांग्रेस और वामपंथी दलों ने सरकार पर सेना की वरिष्ठता को नजरअंदाज कर ले. जनरल रावत की नियुक्त पर सवाल खड़ा किया है तो वहीं सरकार ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा इसे योग्यता के आधार पर लिया गया फैसला करार दिया। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने रविवार को कहा कि सरकार को यह बताना चाहिए कि आधिकारियों के वरीयता क्रम का उल्लंघन क्यों किया गया। तो वहीं भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के नेता डी. राजा ने कांग्रेस के सुर में सुर मिलाते हुए सरकार के इस फैसले को दुर्भायपूर्ण करार दिया। डी. राजा ने कहा कि सरकार बताए कि यह नियुक्तियां क्यों की। वैसे एक दिन बाद कांग्रेस के वरिष्ट नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने सेना की नियुक्ति को लेकर मचे बवाल पर खेद जताते हुए कहा कि सेना को सियासत के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सेना में हमेशा वरिष्ठताक्रम मायने नहीं रखता है। उधर, विपक्षियों की तरफ से सेनाध्यक्ष की नियुक्त को लेकर जो आपत्तियां उठाई गईं, उन्हें भाजपा ने सिरे से खारिज कर दिया। भाजपा महासचिव श्रीकांद शर्मा ने कहा क यह योग्यता पूरी तरीके से योग्यता के आधार पर लिया गया है। उन्होंने उल्टा आरोप लगाया कि अपनी राजनीतिक हताशा छिपाने के लिए विपक्ष निचले स्तर पर गिर गया है, जो न तो समाज के लिए अच्छा है और न ही उनकी राजनीति के लिए।
जबकि, केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, इस फैसले के लिए 10 जनपथ से इजाजत लेने की जरूरत नहीं है। अब पारदर्शिता से काम हो रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय सचिव सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष हर मुद्दे का राजनीतिकरण चाहती है। बिपिन रावत के पास उग्रवाद के खिलाफ दस साल का अनुभव भी रहा है और पाकिस्तानी सीमा और चीनी सीमा पर ऑपरेशन के हिस्सेदार भी रहे हैं। पिछले दिनों में भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए आक्रामक रुख का संकेत दिया है, उसमें सरकार ने देश के लिए रावत को सेना की कमान देने का फैसला किया है। इस बार रक्षा मंत्रालय की ओर से बार-बार संकेत दिए गए थे कि सिर्फ वरिष्ठता आधार न हो। बिपिन रावत ले. ज. बख्शी से जूनियर तो हैं हीं, दक्षिणी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल पीएम हैरिज से भी जूनियर हैं। लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत ने 1 सितंबर को वाइस चीफ का कार्य भार संभाला था, जिससे वह आर्मी चीफ की रेस में प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। ऊंचाई वाले इलाकों में अभियान चलाने और उग्रवाद से निपटने का उन्हें खासा अनुभव है। उनकी नियुक्ति चीन से लगे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल और कश्मीर में रह चुकी है। सेना में किसी वरिष्ठ अधिकारी को नजरअंदाज कर उनसे जूनियर को कमान सौंपे जाने का यह पहला उदाहरण नहीं है। 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा पर ले. जनरल ए. एस वैद्य को तवज्जो देते हुए सेना प्रमुख की जिम्मेदारी सौंप दी थी। इससे नाराज होकर सिन्हा ने इस्तीफा सौंप दिया था। इससे पहले 1972 में इंदिरा गांधी सरकार ने खासे लोकप्रिय रहे लेफ्टिनेंट जनरल पीएस भगत को नजरअंदाज कर दिया था।