बिहार विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद बीजेपी उत्तर प्रदेश में सामाजिक न्याय के मुद्दे और मुख्यमंत्री के क्षेत्रीय उम्मीदवार पर गंभीरता से विचार कर रही है. सूत्रों के अनुसार, भाजपा किसी पिछड़े वर्ग के चेहरे को यूपी में 2017 के चुनावों से पहले मुख्यमंत्री के रुप मे उतार सकती है।
बिहार में बीजेपी ने विकास को मुद्दा बनाया था और बिना किसी चेहरे के उतरी थी। भाजपा ने पूरा चुनाव मोदी के नाम पर लड़ा था लेकिन उसके वावजूद उसे चुनाव में करारी हार मिली. अब नयी रणनीति के मुताबिक भाजपा क्षेत्रीय चेहरे के साथ यूपी में 2017 के चुनावों में उतरने का मन बना रही है। जिस तरह से बिहार में मुख्यमंत्री पद के लिए उम्मीदवार की घोषणा न होने से पार्टी को भीतरघात का सामना करना पड़ा उसके बाद पार्टी उत्तर प्रदेश में यह रिस्क नहीं लेना चाहती है। साथ ही भाजपा यह भी तलाश रही है कि वह चेहरा पिछड़े वर्ग से होना चाहिये। क्योंकि यूपी मे भाजपा अपना मुख्य प्रतिद्वन्दी समाजवादी पार्टी को मानती है।़ उसे लगता है कि अगर सपा के मुस्लिम और पिछड़़े वर्ग के गठजोड़ को तोड़ दिया जाय तो सफलता हाथ लग सकती है। मुस्लिम तो टूटने से रहे सो सबसे ज्यादा वोट बैंक वाले पिछड़े वर्ग मे ही सेंध लगायी जायें। मुलायम सिंह यादव को पिछड़े वर्ग के नेता के रुप में जाना जाता है। यूपी मे ज्यादातर पिछड़े वर्ग की जातियां मुलायम सिंह को ही अपना नेता मानती है। ऐसी स्थिति मे भाजपा के लिये यह जरुरी हो जाता है कि कोई पिछड़े वर्ग का प्रभावशाली नेता ही समाजवादी पार्टी के सामने उतारा जाये। वैसे तो भाजपा मे कल्याण सिंह, ओमप्रकाश सिंह, विनय कटियार, राजवीर सिंह आदि कई बड़े पिछड़ें वर्ग के नेता मौजूद हैं। लेकिन ये सच्चाई है कि इनमें से कोई भी मुलायम सिंह के सामने नही ठहरता है। इसलिये भाजपा की तलाश जारी है। अभी लगभग डेढ़ साल का वक्त बाकी है। इस बीच भाजपा किसी नये चेहरे को भी कमान सौंपकर स्थापित कर सकती है। या हो सकता है कि वह अपने पुराने और अनुभवी नेताओं पर ही दांव लगाये।