लखनऊ, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज उत्तर प्रदेश विधान परिषद के 6 रिक्त स्थानों पर नये सदस्यों के नाम निर्देशन हेतु मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा अग्रसारित की गयी 4 व्यक्तियों की सूची में से बलवंत सिंह रामूवालिया, जहीर हसन वसीम बरेलवी तथा मधुकर जेटली के नाम पर अपनी सहमति प्रदान कर दी है लेकिन राजपाल कश्यप के नाम पर सहमति नही दी है। राम नाईक ने राजपाल कश्यप के संबंध में कुछ बिन्दुओं पर जानकारी मांगते हुए उन्हें एक पत्र भेजा है। यूपी के गवर्नर रामनाइक ने रामूवालिया सहित तीन नामों पर अपनी सहमति जतायी है। इससे पूर्व भी राज्यपाल ने 2 जुलाई 2015 को राजपाल कश्यप के नाम पर सहमति नही दी थी और कहा था कि राजपाल कश्यप के ऊपर गंभीर आरोप हैं।
सवाल यह उठता है कि गवर्नर साहब को राजपाल कश्यप के वे दाग तो दिखायी दे गये जो छात्र जीवन के हैं और शायद उस समय के हैं जब गवर्नर साहब यूपी मे थे ही नही लेकिन उन्हे मधुकर जेटली के वह दाग क्यों नही दिखायी दिये जो मात्र ७ माह पुराने हैं। उस समय तो गवर्नर साहब यूपी मे ही थे, जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा मधुकर जेटली को भ्रष्टाचार के आरोप मे सलाहकार, वाह्य सहायतित परियोजना के पद से बर्खास्त किया गया था। लखनऊ मेट्रो मे मधुकर जेटली के द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार से क्षुब्ध होकर मेट्रोमैन श्रीधरन ने मुख्यमंत्री से मधुकर जेटली की शिकायत की थी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मामले की गंभीरता को समझते हुये मधुकर जेटली को तत्काल बर्खास्त कर दिया था। यह मामला मीडिया मे भी चर्चा मे रहा था। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक की कार्यशैली को देखते हुये यह कह पाना तो मुश्किल है कि उन्हे मधुकर जेटली पर लगे आरोपों की जानकारी नही है।तो क्या राज्यपाल राम नाईक ने मधुकर जेटली पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को नजरअंदाज कर दिया। फिर क्यों यह भेदभाव राजभवन द्वारा किया जा रहा है।
लोगों ने तो इस प्रकरण को भी जातीय भेदभाव से जोड़ दिया है। आरोप है कि राजपाल कश्यप चूंकि पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखतें हैं इसलिये उनके क्साथ यह भेदभाव किया जारहा है और मधुकर जेटली को ब्राह्मण होने का पूरा फायदा मिल रहा है, इसलिये मधुकर जेटली के दाग गवर्नर साहब को अच्छे लग रहे हैं।