मथुरा, सप्त देवालयों में मशहूर वृन्दावन के राधा बल्लभ मंदिर में वर्तमान में अनूठा खिचड़ी महोत्सव चल रहा है। इस महोत्सव में श्यामाश्याम की निकुज लीला के भी दर्शन हो रहे हैं।
राधा बल्लभ मन्दिर का निर्माण हित हरिवंश प्रभु ने सोलहवीं शताब्दी में कराया था । इस मन्दिर का विग्रह श्यामाश्याम के अनूठे प्रेम का जीवन्त नमूना है।इस मन्दिर में श्यामसुन्दर एवं किशोरी जी के दर्शन एक साथ होते हैं अर्थात एक स्वास दो गात की कहानी इस विग्रह में समाहित है । इस मन्दिर के विगृह में राधा में श्रीकृष्ण और श्रीकृष्ण में श्री राधा के दर्शन होते हैं। मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि राधाबल्लभ दर्शन दुर्लभ यानी जब ठाकुर जी चाहेंगे तभी दर्शन मिल सकेंगे।
मन्दिर के टीकैत मोहित मराल गोस्वामी ने बताया कि इस मन्दिर के विगृह को भगवान शिव ने अपने भक्त आत्मदेव को तब दिया था जब वे कैलाश पर्वत पर तप करने गए थे। लम्बे समय तक आत्मदेव के वंशजों द्वारा सेवा पूजा करने के बाद राधारानी की आज्ञा से हित हरिवंश महाप्रभु इस विगृह को वृन्दावन लेकर आए थेे। उन्होंने बताया कि वेैसे तो इस मन्दिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, राधा अष्टमी से लेकर होली तक कई त्योहार समय समय पर मनाये जाते हैं किंतु खिचड़ी उत्सव यहां का विशेष उत्सव है जिसमें खिचड़ी उत्सव के साथ श्यामसुन्दर और किशोरी जी के निकुंज लीला के भी दर्शन होते हैं।
मन्दिर का खिचड़ी उत्सव वास्तव में श्यामाश्याम को सर्दी से बचाने के लिए एक माह तक मनाया जाता है।यहां की खिचड़ी निराली होती है,उसमें काजू, बादाम, अखरोट, पिस्ता, जायफल, जावित्री , कालीमिर्च , जावित्री , केशर, पंच मेवा आदि का प्रयोग किया जाता है। इसमें जहां खिचड़ी मीठी और नमकीन बनाई जाती है वहीं खिचड़ी के साथ विभिन्न प्रकार की सब्जी, श्रीखण्ड, कुलिया की मिठाई, अनार जैसे फलों एवं विभिन्न प्रकार के अचार के साथ साथ प्रतिदिन नाना प्रकार के व्यंजन श्यामाश्याम केा परोसे जाते हैं।
मन्दिर के टीकैत के अनुसार इसमें समाज गायन के पद के माध्यम से ठाकुर राधाबल्लभ महराज को खिचड़ी परेासी जाती है। इस बार यह महोत्सव दस फरवरी तक चलेगा। राधाबल्लभ लाल खिचड़ी अरोगने के बाद भक्तों कोे निकुंज लीलाओं में अलग अलग वेश में दर्शन देते हैं। कभी वे सब्जी बेचनेवाले बन जाते हैं तो कभी मनिहारिन बनकर आते हैं कभी गाय चरानेवाले ग्वाले बनते हैं तो कभी फल बेचनेवाले बन जाते हैं। निकुंज लीलाओं का भाव यह है कि श्यामसुन्दर किशोरी जी को किसी न किसी बहाने निकुंज लीला या रासलीला करने के लिए बुलाते हैं। यह लीलाएं अनूठी होती हैं तथा खिचड़ी महोत्सव सुबह पांच बजे से शुरू हो जाता है। इस महोत्सव में श्रद्धा, भक्ति और संगीत की ऐसी त्रिवेणी प्रवाहित होती है कि भक्त का रोम रोम पुलकित हो जाता है।