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राधाकुण्ड में आधी रात स्नान करते हैं निसंतान दंपत्ति

मथुरा , संतान की लंबी आयु के लिये लगभग समूचे उत्तर भारत में मनाये जाने वाले पर्व अहोई अष्टमी की रात कान्हा नगरी मथुरा में निसंतान दंपत्ति संतान प्राप्ति की मनोकामना के साथ राधाकुण्ड में स्नान करते हैं।इस बार अहोई अष्टमी का पर्व पांच नवंबर को मनाया जाएगा।

मान्यता है कि जो निसंतान दंपत्ति पूर्ण भक्ति भाव से अहोई अष्टमी की रात 12 बजे मथुरा जिले की गोवर्धन तहसील के राधाकुण्ड कस्बे में राधा कुंड में स्नान करते हैं उन्हें पुत्र रत्न अथवा संतान की प्राप्ति होती है।

ब्रज संस्कृति के प्रकाण्ड पण्डित शंकरलाल चतुर्वेदी ने बताया कि पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने अरिष्टासुर राक्षस का वध कर दिया तो राधारानी ने उन्हें निज महल में प्रवेश नहीं दिया और कहा कि चूंकि उन्होंने गोवंश की हत्या की है इसलिए वे सात तीर्थों में स्नान करके आयें तभी उन्हें निज महल में प्रवेश मिलेगा। इसके बाद कान्हा ने वहीं पर अपनी बंशी से कुंड खोदकर सात तीर्थों के जल का आह्वान कर उसमें स्नान किया था तथा राधारानी से कहा था कि चूंकि वे उनकी अर्धांगिनी हैं इसलिए उन्हें भी सात तीर्थो के जल से स्नान करना चाहिए।

इसके बाद राधारानी ने भी अपने कंगन से जब कुंड की खोदाई की तो और स्नान करने जाने लगीं तो कान्हा ने दोनो कुंडो को एक में मिला दिया जिससे तीर्थों का जल राधा कुंड में भी प्रवेश कर गया और राधारानी ने भी तीर्थों के पवित्र जल से स्नान कर लिया। बाद में जिस कुंड में कान्हा ने स्नान किया उसे श्याम कुंड और जिसमें राधा ने स्नान किया था वह राधाकुंड के नाम से मशहूर हो गया।

दोनो कुंडों के एक होने के बाद कान्हा ने राधा का महत्व बढ़ाते हुए उनसे कहा कि जो पति पत्नी पूरे भक्ति भाव से तुम्हारे कुंड में अहोई अष्टमी की रात 12 बजे स्नान करेंगे उन्हें संतान की प्राप्ति होगी।

चतुर्वेदी ने बताया कि इस रात राधाकुंड में मेला सा लग जाता है। चूंकि परंपरा के अनुसार राधा कुंड में स्नान करने पर संतान की प्राप्ति होती है इसलिए स्नान के पूर्व एक फल या सब्जी को लेकर पति पत्नी संकल्प लेते हैं कि वे अपने शेष जीवन में इसे अब नही खाएंगे। ज्यादातर लोग पेठा बनाने वाले कुम्हड़े काे खाना बंद करते हैं।