नई दिल्ली, केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा है कि वंदे मातरम का भारतीय जनमानस में विशिष्ट एवं खास स्थान है लेकिन उसे राष्ट्रगान जन गण मन के बराबर नहीं माना जा सकता जिसकी रचना रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी। केंद्र ने एक जनहित याचिका को लेकर यह जवाब दिया जिसमें राष्ट्रगीत वंदे मातरम के लिए बराबर दर्जे की मांग की गयी। वंदे मातरम की रचना कवि बंकिमचंद्र चटर्जी ने की थी।
गृह मंत्रालय ने बुधवार को याचिका खारिज करने की मांग करते हुए मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी एवं न्यायमूर्ति संगीता ढिंगरा सहगल की पीठ से कहा कि वंदे मातरम को जन गण मन के बराबर मानने की मांग से संबंधित याचिका मंजूर नहीं की जा सकती। मंत्रालय ने अपने हालिया शपथपत्र में कहा, हालांकि राष्ट्रध्वज एवं गान भारतीय राज्यों के आधिकारिक प्रतीक के तौर पर प्रिय हैं और उनका सम्मान किया जाता है, उनके वर्गीकरण की जरूरत है। मंत्रालय ने कहा, वंदे मातरम भारत के लोगों की भावनाओं एवं मन में एक विशिष्ट एवं खास स्थान रखता है जिसके लिए कोई औपचारिक समर्थन या वर्गीकरण की जरूरत नहीं है।
इसमें कहा गया कि रचनात्मक कार्य का सम्मान किया जाए, यह सुनिश्चित करने के लिए कानूनी संरक्षण एकमात्र तरीका नहीं है। शपथपत्र में कहा गया, कानून के तहत संरक्षण रचनात्मक कार्य के प्रति सम्मान दिखाने का एकमात्र तरीका नहीं है। करोड़ों भारतीय रामचरितमानस एवं महाभारत का पूरे दिल से सम्मान करते हैं और उनमें उनकी अगाध श्रद्धा है। इसमें कहा गया, एक राष्ट्र का एक ही ध्वज और एक ही राष्ट्रगान होता है जिसका मतलब यह नहीं है कि दूसरे गीत या प्रार्थनाओं के लिए कोई कम सम्मान है या नागरिकों को दूसरे गीतों, किताबों या प्रतीकों से प्रेम करने, उनका सम्मान करने, उन्हें गाने एवं उनसे भावनात्मक लगाव रखने से रोका जा रहा है। शपथपत्र मशहूर उद्योगपति गौतम आर मोरारका की जनहित याचिका के जवाब में दायर किया गया जिन्होंने अदालत से केंद्र को वंदे मातरम के प्रति भी उचित सम्मान सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की थी।