नई दिल्ली, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी(माकपा) ने गुरूवार को केंद्र सरकार के रेल बजट को आम बजट में विलय करने के फैसले का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि जनसाधारण के लिए यह कदम बड़े हुए भाड़े और अभिजात वर्ग सेवाओं तथा गरीब सुविधाएं में बढती हुई खाई का पूर्वसूचक हैं। पार्टी ने केंद्र के इस फैसले को संसद में चर्चा कराये बिना लिया गया एक तरफा कदम बताया। पार्टी पोलितब्यूरो ने एक बयान जारी कर कहा हैं कि केवल संसद ही रेलवे के विकास और उसकी वित्तीय व्यवस्था पर चर्चा करने के लिए सशक्त हैं। पार्टी ने कहा कि 92 वर्षों से चली आ रही रेल बजट की परंपरा को समाप्त किया जाना रेलवे के व्यवसायीकरण और निजीकरण की तरफ एक बढ़ता कदम हैं। बयान में कहा गया कि भारतीय रेलवे देश में सबसे बड़ी परिवहन प्रणाली हैं जो कि करोड़ो आम लोगों की सेवा में लगी हुई हैं और इस जानसेवा वाहक को केवल व्यावसायिक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता। वाम दल ने कहा कि रेलवे बजट जो संसद में पेश होता था वह संसदीय जांच और वित्तीय अनुमोदन, व्यय और बहस के लिए एक मौका होता था जो अब उसकी समाप्ति के साथ खत्म हो गया हैं। पार्टी ने कहा कि रेल बजट का आम बजट में विलय बिबेक देबरॉय समिति की सिफारिशों के अनुरूप हैं जिसमे भारतीय रेलवे के व्यवसायीकरण और निजीकरण का खाका तैयार किया गया हैं।