लखनऊ, राजधानी में चलने वाली सिटी बसों कि स्थिति इस कदर खराब हो गई है कि इसमें सफर करने वाले यात्रियों की संख्या घटकर 40 हजार हो गई है। जबकि पहले इन बसों में सफर करने वाले यात्रियों की संख्या 60 हजार रहा करती थी।
परिवहन सूत्रों ने बताया कि सफर करने वाले दैनिक यात्रियों का सफर जानलेवा बनता जा रहा है। बसों में तकनीकी खराबी की वजह से बसों के ब्रेक फेल हो रही है। रोजाना दो दर्जन से ज्यादा बसें बीच सड़क पर दम तोड़ रही है। अधिकारी बजट और कुशल मैकेनिकों की कमी का रोना रोकर यात्रियों की परेशानी को दरकिनार कर रहे हैं। यही वजह है कि रोजाना सिटी बसों में सफर करने वाले 60 हजार यात्रियों की संख्या घटकर 40 हजार पहुंच गई। साथ ही, एमएसटी के सहारे सफर करने वाले स्कूली छात्र-छात्राएं भी सिटी बसों की सेवा से दूर भाग रहे हैं। इससे सिटी ट्रांसपोर्ट को रोजाना दो लाख रुपए का नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। इस नुकसान की भरपाई के लिए अधिकारी मंडलायुक्त से लेकर नगर विकास विभाग तक चक्कर लगाने को मजबूर हैं।
सिटी बस के एक अधिकारी ने बताया कि जवाहर लाल नेहरू अर्बन मिशन योजना के तहत वर्ष 2009 में 260 सिटी बसें लखनऊ को मिली थीं। इनमें गोमतीनगर बस डिपो से 135 और दुबग्गा डिपो से 125 सिटी बसें संचालित हो रही थीं। इनमें से 30 बसें कबाड़ हो चुकी हैं। बाकी 70 बसें मरम्मत के आभाव में हालत बेहद खराब है। ऐसे में 100 बसें कंडम हैं, बाकि 160 सिटी बसों के सहारे यात्री सफर कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि गोमतीनगर और दुबग्गा सिटी बस डिपो में 220 मैकेनिक हैं। बावजूद बसों की स्थिति जस की तस है। वजह यह भी है कि इन मैकेनिकों में कोई भी कुशल मैकेनिक नहीं है। मारकोपोलो जैसे हाईटेक सिटी बसों की मरम्मत के लिए कुशल कारीगर सिर्फ दिल्ली परिवहन सेवा में हैं। अधिकारी ने बताया कि सिटी ट्रांसपोर्ट को यात्री किराए के रूप में रोजाना आठ लाख रुपये मिलता है। रोजाना विभिन्न प्रकार के खर्चे मिलाकर दस लाख रुपये हैं। ऐसे में दो लाख रुपये का रोजाना नुकसान उठाना पड़ रहा है। वर्ष 2015 में 20 करोड़ रुपए मिले थे। इनमें से दो करोड़ बसों की मरम्मत में खर्च हुए थे। सिटी बसों की खराब स्थिति पर एमडी ए. रहमान ने कहा कि सिटी ट्रांसपोर्ट में बजट का कोई प्रावधान नहीं है। यह जरूर है कि वर्ष 2009 में जब एसपीवी यानि स्पेशल परपज व्हीकल का गठन हुआ था उस वक्त सिटी बसों से होने वाले नुकसान की भरपाई एसपीवी से जुड़े आठ विभागों के सदस्यों को करना था।