नयी दिल्ली, लोकसभा ने ‘कंपनी संशोधन विधेयक 2018’ को मंजूरी प्रदान कर दी जिसमें कारोबार सुगम बनाने के उद्देश्य से कारपोरेट प्रशासन एवं अनुपालन कार्य ढांचा के बीच अंतर को दूर करने का प्रावधान किया गया है । लोकसभा में विधेयक को चर्चा एवं पारित कराने के लिए पेश करते हुए विधि राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने कहा कि 16 अपराधों को नए सिरे से श्रेणीबद्ध करने के लिए यह विधेयक लाया गया है।
बीजू जनता दल (बीजद) के तथागत सतपति को विधेयक लाने की क्या जरूरत थी। क्या लोगों का यह जानने का हक नहीं है कि यह विधेयक जल्दबाजी में क्यों लाया गया है और किसके हित में लाया गया है? तेलंगाना राष्ट्र समिति के बीबी पाटिल ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि यह विधेयक ‘राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण’ (एनसीएलटी) पर मामलों के बढ़ते बोझ को कम करने में मददगार साबित होगा। चर्चा का जवाब देते हुए चौधरी ने कहा कि एनसीएलटी के पास मामलों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई थी और ऐसे में जालसाजी के गंभीर मामलों को निपटारा नहीं हो पा रहा था।
मंत्री के जवाब के बाद सदन ने इस विधेयक को ध्वनिमत से मंजूरी प्रदान कर की। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि कंपनी अधिनियम 2013 कंपनियों से संबंधित विधि को समेकित करने और उसका संशोधन करने की दृष्टि से अधिनियमित किया गया था । कंपनी अधिनियम 2013 के अधीन अपराधों और संशोधित विषयों से संबंधित कार्य ढांचे का फिर से विचार करने और बेहतर कारपोरेट अनुपालन का संवर्द्धन करने हेतु सिफारिश करने के लिये भारत सरकार ने जुलाई 2018 में एक समिति का गठन किया और उक्त समिति ने विभिन्न पक्षों की राय प्राप्त करने के बाद अगस्त 2018 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। समिति ने सिफारिश की थी कि कानूनों की मौजूदा कठोरता गंभीर अपराधों के लिये बनी रहनी चाहिए जबकि ऐसी कमियों को आंतरिक न्याय निर्णयन प्रक्रिया में परिवर्तित की जा सकती है ।
समिति के अनुसार, इससे सुगम कारोबार करने और बेहतर कारपोरेट अनुपालन को बढ़ाने के दोहरे प्रयोजन पूरे होंगे । इससे विशेष न्यायालयों में दायर किये गए अभियोजनों की संख्या में कमी आयेगी जो बाद में गंभीर अपराधाों के त्वरित निपटान को सुगम बनायेंगे।
चूंकि संसद सत्र में नहीं थी और तुरंत कार्रवाई की जानी अपेक्षित थी। इसलिये कंपनी संशोधन अध्यादेश 2018 को राष्ट्रपति द्वारा 2 नवंबर 2018 को जारी किया गया था । इसके तहत कंपनी संशोधन अधिनियम 2013 की धारा 2 के खंड 41 का संशोधन करने की बात कही गई है जिससे केंद्रीय सरकार को कुछ कंपनियों को अधिकरण की बजाय भिन्न भिन्न वित्त वर्ष रखने की बात कही गई है ।
नयी दिल्ली, लोकसभा ने ‘कंपनी संशोधन विधेयक 2018’ को मंजूरी प्रदान कर दी जिसमें कारोबार सुगम बनाने के उद्देश्य से कारपोरेट प्रशासन एवं अनुपालन कार्य ढांचा के बीच अंतर को दूर करने का प्रावधान किया गया है । लोकसभा में विधेयक को चर्चा एवं पारित कराने के लिए पेश करते हुए विधि राज्य मंत्री पीपी चौधरी ने कहा कि 16 अपराधों को नए सिरे से श्रेणीबद्ध करने के लिए यह विधेयक लाया गया है।
बीजू जनता दल (बीजद) के तथागत सतपति को विधेयक लाने की क्या जरूरत थी। क्या लोगों का यह जानने का हक नहीं है कि यह विधेयक जल्दबाजी में क्यों लाया गया है और किसके हित में लाया गया है? तेलंगाना राष्ट्र समिति के बीबी पाटिल ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि यह विधेयक ‘राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण’ (एनसीएलटी) पर मामलों के बढ़ते बोझ को कम करने में मददगार साबित होगा। चर्चा का जवाब देते हुए चौधरी ने कहा कि एनसीएलटी के पास मामलों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई थी और ऐसे में जालसाजी के गंभीर मामलों को निपटारा नहीं हो पा रहा था।
मंत्री के जवाब के बाद सदन ने इस विधेयक को ध्वनिमत से मंजूरी प्रदान कर की। विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि कंपनी अधिनियम 2013 कंपनियों से संबंधित विधि को समेकित करने और उसका संशोधन करने की दृष्टि से अधिनियमित किया गया था । कंपनी अधिनियम 2013 के अधीन अपराधों और संशोधित विषयों से संबंधित कार्य ढांचे का फिर से विचार करने और बेहतर कारपोरेट अनुपालन का संवर्द्धन करने हेतु सिफारिश करने के लिये भारत सरकार ने जुलाई 2018 में एक समिति का गठन किया और उक्त समिति ने विभिन्न पक्षों की राय प्राप्त करने के बाद अगस्त 2018 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। समिति ने सिफारिश की थी कि कानूनों की मौजूदा कठोरता गंभीर अपराधों के लिये बनी रहनी चाहिए जबकि ऐसी कमियों को आंतरिक न्याय निर्णयन प्रक्रिया में परिवर्तित की जा सकती है ।
समिति के अनुसार, इससे सुगम कारोबार करने और बेहतर कारपोरेट अनुपालन को बढ़ाने के दोहरे प्रयोजन पूरे होंगे । इससे विशेष न्यायालयों में दायर किये गए अभियोजनों की संख्या में कमी आयेगी जो बाद में गंभीर अपराधाों के त्वरित निपटान को सुगम बनायेंगे।
चूंकि संसद सत्र में नहीं थी और तुरंत कार्रवाई की जानी अपेक्षित थी। इसलिये कंपनी संशोधन अध्यादेश 2018 को राष्ट्रपति द्वारा 2 नवंबर 2018 को जारी किया गया था । इसके तहत कंपनी संशोधन अधिनियम 2013 की धारा 2 के खंड 41 का संशोधन करने की बात कही गई है जिससे केंद्रीय सरकार को कुछ कंपनियों को अधिकरण की बजाय भिन्न भिन्न वित्त वर्ष रखने की बात कही गई है ।