नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वकालत का पेशा सुधार के लिए चिल्ला रहा है और वकीलों को खुली छूट नहीं दी जा सकती क्योंकि न्याय का क्षेत्र एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। न्यायालय ने यह टिप्पणी करते हुए बार परीक्षा के खिलाफ एक याचिका पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया से जवाब मांगा। इस परीक्षा को वकालत का लाइसेंस देने के लिए अनिवार्य बना दिया गया है। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और यूयू ललित की पीठ ने बीसीआई को उस याचिका पर नोटिस जारी किया जिसमें 2010 की एक अधिसूचना को निरस्त करने की मांग की गई है जिसके जरिए वकीलों को ऑल इंडिया बार एक्जामिनेशन में बैठना और उसे पास करना अनिवार्य बना दिया गया है। पीठ ने शुक्रवार को तीन जजों की पीठ के समक्ष याचिका पर सुनवाई निर्धारित कर दी है। हालांकि पीठ ने आगामी एआईबीई पर रोक नहीं लगाई। उसने कहा कि वह इसके खिलाफ नहीं है और इसका परीक्षण करेगा कि क्या अधिवक्ता अधिनियम के तहत इसकी अनुमति है। पीठ ने कहा, व्यवस्था सुधार के लिए चीख रही है अदालतों में 20 लाख से अधिक वकील हैं। इसका मतलब है कि हमारे पास पर्याप्त वकील हैं और भविष्य में प्रतिभा के आधार पर इसमें लोगों को शामिल होने दिया जाना चाहिए। पीठ ने कहा, यह ऐसा पेशा नहीं है जहां आपको खुली छूट दी जा सकती कोर्ट ने कहा कि ला कालेजों की हालत खराब है। पीठ कर्नाटक निवासी आर नागभूषण की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा कि वह इस मामले में सहायता के लिए फाली एस नरीमन जैसे वरिष्ठ अधिवक्ताओं को न्याय मित्र नियुक्त करने पर विचार कर सकती है।