इलाहाबाद ने विवाहित बेटियों को लेकर एक अहम फैसला दिया है। हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश मृतक आश्रित सेवा नियमावली के नियम 2 (सी) (111) को असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा है कि मृतक आश्रित कोटे के तहत बेटी को शादीशुदा होने के आधार पर नियुक्ति देने से इनकार नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि विवाहित बेटा नौकरी पा सकता है तो विवाहित बेटी को नौकरी देने से इनकार करने का क्या मतलब है? कोर्ट ने आजमगढ़ के डीएम की ओर से राजस्व विभाग में कार्यरत पिता की सेवा काल में मौत के बाद विवाहित बेटी की नियुक्ति देने से इनकार करने के आदेश को रद्द कर दिया है। साथ ही नियम के मुताबिक याचिका दाखिल करने वाली महिला को नौकरी देने पर विचार करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश चीफ जस्टिस डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस यशवंत वर्मा की बेंच ने विमला श्रीवास्तव की पिटिशन पर दिया है। याची के पति की राजस्व विभाग में सेवाकाल में मृत्यु हो गई थी। याची की बेटी विवाहित है, जिसने अपने पिता के आश्रित के रूप में नियुक्ति की मांग की थी। सेवा नियमावली में बेटा और अविवाहित बेटी व विधवा को नौकरी देने का नियम है। कोर्ट ने अविवाहित शब्द को अनुच्छेद 14 और 15 के विपरीत माना और कहा कि विवाहिता को नियुक्ति देना लिंग भेद करना है, जिसे संविधान में प्रतिबंध किया गया है। 27 नवंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा था कि तलाकशुदा लड़की को भी मृतक आश्रित सेवा नियमावली के तहत नियुक्ति पाने का अधिकार है। कोर्ट ने इसके लिए राज्य सरकार को आश्रित सेवा नियमावली में जरूरी बदलाव करने को कहा था। कोर्ट ने कहा था कि तलाकशुदा लड़की को मृतक आश्रित कोटे में नौकरी नहीं देना अन्याय है। विधवा की ही तरह तलाकशुदा महिला का भी पति नहीं होता। ऐसे में वह पैतृक आवास में ही रहने को मजबूर हो जाती है।