प्रयागराज, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ज्ञानवापी के व्यासजी तहखाने में काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास को पूजा का अधिकार देने के वाराणसी जिला न्यायाधीश के 17 जनवरी के आदेश को चुनौती देने वाली अंजुमन इंतिजामिया मसाजिद की अपील सोमवार को खारिज कर दी ।
न्यायालय ने ज्ञानवापी के व्यास जी तहखाने में काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास को पूजा का अधिकार देने के वाराणसी जिला जज के आदेश को सही माना है, साथ ही 1993 के उत्तर प्रदेश सरकार के उस मौखिक आदेश को भी अवैध बताया, जिसके आधार पर तहखाने में पूजा-पाठ, अनुष्ठान करने पर रोक लगा दी गई थी। न्यायालय ने कहा कि समग्र दलीलों पर विचार करने और रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री का विश्वलेषण करने के बाद यह पाया गया कि जिला जज के आदेश में हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने अंजुमने इंतजामिया कमेटी की ओर से दाखिल दो याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि जिला जज के 17 जनवरी के आदेश के तहत डीएम वाराणसी को रिसीवर नियुक्त किया गया था और 31 जनवरी के आदेश के तहत रिसीवर की देख रेख में पुजारी द्वारा व्यास जी तहखाने में पूजा-पाठ और अनुष्ठान करने की व्यवस्था दी गई। तहखाने में पूजा शुरू हो चुकी है। जिला जज ने अपने आदेश में कोई गलती नहीं है।
उधर, इस फैसले पर अंजुमने इंतजामियां कमेटी ने जहां असंतोष जताया है। वहीं मंदिर पक्ष की ओर से इसका स्वागत किया गया है। हिंदू पक्ष के पैरोकार विष्णु शंकर जैन और श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के विनीत संकल्प ने कहा कि वह इस फैसले का स्वागत करते हैं। यह एक ऐतिहासिक फैसला है। वहीं, इंतजामिया कमेटी की पैरवी करने वाले अधिवक्ता एसएफए नकवी ने कहा कि कमेटी इस फैसले का अध्ययन कर सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी।
मामले में अंजुमने इंतजामियां कमेटी ने जिला जज के 17 जनवरी और 31 जनवरी के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें रिसीवर नियुक्त कर वहां व्यास जी तहखाने की पूजा शुरू करा दी गई थी।
न्यायालय ने कहा कि तहखाने में भक्तों द्वारा पूजा और अनुष्ठान करने से रोकना हिंदुओं के हित के खिलाफ होगा। ज्ञानवापी परिसर के दक्षिण भाग में स्थित व्यास तहखाने पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान आदि होते रहे हैं। हालांकि, दिसंबर 1993 में यूपी सरकार ने अपने मौखिक आदेश के जरिए बंद कराया था। यूपी सरकार इस तरह की मनमानी कार्रवाई से लोगों के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत दिए गए अधिकारों को छीन नहीं सकती है। तहखाने पर व्यास परिवार का 1937 से ही स्वामित्व था और 1993 तक उसके कब्जे में था।
न्यायालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम 1993 में प्रावधान है कि जिला मजिस्ट्रेट जो न्यासी बोर्ड का पदेन सदस्य और कार्यकारी समिति का सदस्य भी है, अपने कर्तव्यों के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य है। बोर्ड और मंदिर के मामलों की देखरेख, निर्देशन और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार कार्यकारी समिति का सदस्य होने के नाते बोर्ड और राज्य सरकार के निर्देशों का पालन करना था।
लिहाजा, याचियों की ओर से डीएम की भूमिका पर दुर्भावना का आरोप नहीं लगाया जा सकता है। क्योंकि, जिला जज ने 17 जनवरी के आदेश के तहत जहां डीएम को रिसीवर नियुक्त कर वादी की अर्जी को निस्तारित कर दिया वहीं, उसने अपने अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए 31 दिसंबर का आदेश पारित कर 17 जनवरी के आदेश में हुई चूक/गलती को सही किया था।
न्यायालय को लगता है कि इस तरह याची की पुनर्न्याय की दलील निराधार है। क्योंकि, वादी द्वारा प्रार्थना की गई राहत 17 जनवरी के आदेश के तहत दी गई लेकिन उसका कुछ हिस्सा उस आदेश में शामिल नहीं किया गया था जो बाद में संशोधित किया गया। कोर्ट ने याची द्वारा जिला जज पर अपने सेवानिवृत्त के दिन ऐसा आदेश पास करने के लगाए गए आरोपों को भी सही नहीं माना। कहा कि यह आरोप जिला जज की छवि को खराब करने के मकसद से लगाया गया था।
डीएम ने जिला जज के 17 जनवरी के आदेश के तहत 24 जनवरी को परिसर को अपने कब्जे में ले लिया था। जिला जज ने 30 जनवरी को याचियों को सुनने के बाद पूजा-पाठ और अनुष्ठान करने का आदेश पारित किया। याचियों की ओर से इस संबंध में निचली अदालत के समक्ष कोई आपत्ति नहीं जताई गई। मामले को केवल गुण-दोष के आधार पर लड़ा। लिहाजा, याचिका खारिज किए जाने योग्य है।
मामले में मस्जिद कमेटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी, जहीर असगर, हिंदू पक्ष की ओर से हरि शंकर जैन, विष्णु शंकर जैन, प्रभाष पांडेय, प्रदीप कुमार शर्मा, और यूपी सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्रा, कुणाल रवि आदि ने पक्ष रखा था।