नयी दिल्ली, देश के सरकारी सेवाओं के लिए भर्ती के लिए होने वाली परीक्षाओं को अनुचित साधनों से प्रभावित करने वाले अपराधियों के विरुद्ध कठोर दंडात्मक प्रावधानों वाले सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक, 2024 को आज लोकसभा में पारित कर दिया गया।
कार्मिक, जनशिकायत एवं पेंशन मामलों के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेन्द्र सिंह ने सदन में संक्षिप्त चर्चा के बाद उत्तर देते हुए कहा कि यह विधेयक राजनीति से परे है। भारत के बेटी बेटों से जुड़ा है। पेपर लीक होने, प्रश्नपत्र बाहर हल किये जाने, नकल किये जाने आदि प्रकार की घटनाओं का परिणाम परिश्रम करने वाले बच्चों को भुगतना पड़ता है। उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ होता है। कई बच्चे भावुकता में अतिवादी कदम उठा लेते हैं।
उन्होंने कहा कि हाल ही में कोटा में एक बच्ची ने आत्महत्या कर ली और उसकी चिट्ठी पढ़ कर सारे देश में लोगों की आंखें नम हो गयीं थीं। हम अपने बच्चों के भविष्य को किसी के हाथों खिलवाड़ के लिए नहीं छोड़ सकते। हमारी भावी पीढ़ी को विकसित भारत के निर्माण में योगदान देना है। इसलिए इस विधेयक को सर्वसम्मति से पारित करना जरूरी है।
डॉ. सिंह ने सदस्यों की उस आशंका का जवाब देते हुए कहा कि इस विधेयक में किसी भी प्रकार से उम्मीदवार को पक्ष नहीं बनाया गया है। उन पर किसी भी तरह की कार्यवाही या प्रताड़ना नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि सदस्यों के उस सुझाव को नोट कर लिया गया है कि अनुचित साधनों के कारण रद्द होने वाली परीक्षा को दोबारा जल्द से जल्द कराया जाये ताकि बच्चों का साल और परीक्षा में भाग लेने का मौका ना बरबाद हो। उन्होंने इस आरोप का खंडन किया कि भाषाई आधार पर लोगों में भेदभाव हो रहा है। उन्होंने कहा कि 13 भाषाओं में परीक्षा का आयोजन किया जाने लगा है।
उन्होंने कहा कि सबको समझना चाहिए कि यह विधेयक किसी को परेशान के लिए नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार एक संवेदनशील सरकार है। यह कानून भी पूरी संवेदनशीलता के साथ बनाया गया है। हमें युवाओं को पूरी क्षमता के साथ आगे आने के लिए प्रेरित करना है तो हमें योग्य प्रतिभावान युवाओं को ऐसे संगठित अपराध का शिकार नहीं बनने देना होगा।
बाद में सदन ने विपक्ष के कुछ संशोधन प्रस्तावों को अस्वीकार करके ध्वनिमत से विधेयक को पारित कर दिया।
इस विधेयक का उद्देश्य पांच सार्वजनिक परीक्षाओं – संघ लोकसेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग, रेल भर्ती बोर्ड, राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी, बैंक कार्मिक चयन संस्थान तथा केन्द्र सरकार के विभागों एवं उनसे संबद्ध कार्यालयों में भर्ती की परीक्षाओं में अनुचित साधनों के उपयोग को रोकना है।
केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित इन परीक्षाओं में प्रश्न पत्र या उत्तर कुंजी की अनधिकृत पहुंच या लीक होना, सार्वजनिक परीक्षा के दौरान उम्मीदवार की सहायता करना, कंप्यूटर नेटवर्क या संसाधनों के साथ छेड़छाड़, योग्यता सूची या रैंक को शॉर्टलिस्ट करने या अंतिम रूप देने के लिए दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़, और फर्जी परीक्षा आयोजित करना, फर्जी प्रवेश पत्र जारी करना या नकल करने या पैसा कमाने के लिए प्रस्ताव पत्र जारी करने के साथ साथ समय से पहले परीक्षा से संबंधित गोपनीय जानकारी का खुलासा करना और व्यवधान पैदा करने के लिए अनधिकृत लोगों को परीक्षा केंद्रों में प्रवेश करने पर रोक लगाता है। इन अपराधों पर तीन से पांच साल तक की कैद और 10 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।
विधेयक में कहा गया है कि सेवा प्रदाताओं को पुलिस और संबंधित परीक्षा प्राधिकारी को रिपोर्ट करना होगा। सेवा प्रदाता एक ऐसा संगठन है जो सार्वजनिक परीक्षा प्राधिकरण को कंप्यूटर संसाधन या कोई अन्य सहायता प्रदान करता है। ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट न करना अपराध होगा। यदि सेवा प्रदाता स्वयं कोई अपराध करता है, तो परीक्षा प्राधिकारी को इसकी सूचना पुलिस को देनी होगी। विधेयक सेवा प्रदाताओं को परीक्षा प्राधिकरण की अनुमति के बिना परीक्षा केंद्र स्थानांतरित करने से रोकता है। सेवा प्रदाता द्वारा किए गए अपराध पर एक करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा। ऐसे सेवा प्रदाता से जांच की आनुपातिक लागत भी वसूल की जाएगी। इसके अलावा, उन्हें चार साल तक सार्वजनिक परीक्षा आयोजित करने से भी रोक दिया जाएगा। इसी तरह से यदि यह स्थापित हो जाता है कि सेवा प्रदाताओं से जुड़े अपराध किसी निदेशक, वरिष्ठ प्रबंधन, या सेवा प्रदाताओं के प्रभारी व्यक्तियों की सहमति या मिलीभगत से किए गए थे, तो ऐसे व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया जाएगा। इन्हें तीन साल से लेकर 10 साल तक की कैद और एक करोड़ रुपये जुर्माने की सजा होगी।
उक्त विधेयक में संगठित अपराधों के लिए उच्च सज़ा के प्रावधान हैं। एक संगठित अपराध को सार्वजनिक परीक्षाओं के संबंध में गलत लाभ के लिए साझा हित को आगे बढ़ाने के लिए किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा किए गए गैरकानूनी कृत्य के रूप में परिभाषित किया गया है। संगठित अपराध करने वाले व्यक्तियों को पांच साल से 10 साल तक की सजा और कम से कम एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। यदि किसी संस्था को संगठित अपराध करने का दोषी ठहराया जाता है, तो उसकी संपत्ति कुर्क और ज़ब्त कर ली जाएगी, और परीक्षा की आनुपातिक लागत भी उससे वसूल की जाएगी।
विधेयक के तहत सभी अपराध संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर-शमनयोग्य होंगे। यदि यह साबित हो जाए कि आरोपी ने नियमानुसार उचित कार्य किया था, तब कोई भी कार्रवाई अपराध नहीं मानी जाएगी। उपाधीक्षक या सहायक पुलिस आयुक्त रैंक से नीचे का अधिकारी अधिनियम के तहत अपराधों की जांच नहीं करेगा। केंद्र सरकार जांच को किसी भी केंद्रीय जांच एजेंसी को स्थानांतरित कर सकती है।
विधेयक पर चर्चा शुरू करते हुए कांग्रेस के के सुरेश ने कहा कि वह इस बात से सहमत है कि सभी बच्चे हमारे साझा हैं। इसलिए वह विधेयक का समर्थन करते हैं। भाजपा की ओर से डॉ. सत्यपाल सिंह, द्रमुक के डी एम कथीर आनंद, वाईआरएस कांग्रेस की चिंता अनुराधा, शिवसेना के राहुल शेवाले, बीजू जनता दल के अच्युतानंद सामंत और बहुजन समाज पार्टी केे मलूक नागर ने भी विधेयक का समर्थन किया।