5 साल की अनुरिमा अस्थमा की शिकार है। बचपन से ही उसे अस्थमा के अटैक आते रहे जो बढ़ती उम्र के साथ कम होने के बजाय बढ़ते गए। इस के लिए उसे नियमित दवा का सहारा लेना पड़ता है। सर्दी के दिनों में यह बीमारी बढ़ जाती है, क्योंकि सर्र्द हवा और ठंड की वजह से श्वास नली में बलगम जल्दी जमा हो जाता है जो श्वास नली को अवरुद्ध कर देता है। इस से मरीज को सांस लेने में कठिनाई होने लगती है। फलस्वरूप सांस फूलने लगती है। कुछ लोगों में यह बीमारी ठंड से एलर्जी होने की वजह से भी बढ़ जाती है। नियमित सावधानी से इस रोग को बढ़ने से रोका जा सकता है।
यह बीमारी आजकल बच्चों से ले कर वयस्कों तक लगभग सभी को है। इस बीमारी के बढ़ने की वजहें प्रदूषण, अनियमित खानपान, तनाव का बढ़ना, किसी चीज से एलर्जी का होना व नींद पूरी न होना आदि हैं। तनाव और धूम्रपान अस्थमा के मुख्य कारक हैं। इन से सब से अधिक अस्थमा बढ़ता है। इस के अलावा नींद की कमी, प्रदूषण भी इस के जिम्मेदार हैं। सही जीवनशैली से इसे कम किया जा सकता है। मेरे पास कई मरीज ऐसे आते हैं जो अस्थमा का नाम सुन कर ही घबरा जाते हैं। जबकि यह बीमारी जानलेवा नहीं है। सही इलाज से इस का निदान संभव है। इस के अलावा कुछ सावधानियां सर्दी के मौसम में अस्थमा के रोगी को अवश्य रखनी चाहिए।
घर को साफसुथरा रखें। ध्यान रहे वैंटिलेशन की सुविधा बेहतर हो।
खाना खाते वक्त अपने हाथों को सैनिटाइजर से धोएं ताकि वायरस आप से दूर रहें।
मुंह के बजाय सांस हमेशा नाक से लें। इस से हवा गरम हो कर आप के सीने तक पहुंचती है, जिस से ठंड कम लगती है।
फ्लू के वैक्सीन अवश्य लगवाएं। इस से व्यक्ति 70 प्रतिशत ठंड की एलर्जी से बच सकता है।
घर में अगर रूमहीटर का प्रयोग करते हैं तो उस के फिल्टर की सफाई अवश्य करें।
घर के पेट्स, टैडी बियर, फर वाले सभी खिलौने, प्लांट्स आदि को बिस्तर से दूर रखें।
पुराने सामान को घर में न रखें, डस्ंिटग के वक्त धूल न उड़ाएं, गीले कपड़े से घर की सफाई करें।
बिस्तर की चादर को फोल्ड कर वाश्ंिग मशीन में डालें, जहां तक संभव हो धूल को उड़ने न दें।
ठंड से बचने के लिए अधिकतर लोग आग या रूमहीटर के पास बैठते हैं जो ठीक नहीं, ऊनी कपड़े अधिक गरम होने पर उस के रेशे जल जाते हैं और इस से निकलने वाला धुआं अस्थमा के रोगियों के लिए खतरनाक होता है, जिसे व्यक्ति गौर नहीं करता, इसलिए रूमहीटर से घर को गरम करें, पर स्वयं से दूरी बनाए रखें, साथ ही घर में नमी को भी बनाए रखें।
सर्दी में भी व्यायाम अवश्य करें, लेकिन पहले अपनेआप को वार्मअप करना न भूलें।
ठंड में खाने में तरल पदार्थ का सेवन अधिक करें, घर पर बना हुआ, कम वसायुक्त खाना खाएं। खाने में ताजे फल, सब्जियां अधिक लें। खट्टे पदार्थ या नीबू खाने से कभी किसी का अस्थमा नहीं बढ़ता, जिन को एलर्जी है वे न खाएं।
कपड़े हमेशा साफसुथरे और धुले हुए ही पहनें। पहले सूती कपड़े पहनें, उन के ऊपर ऊनी कपड़े पहनें।
दवा का सेवन नियमित करें। स्प्रे, इनहेलर को जरूरत के अनुसार लें।
छोटे बच्चे अगर अस्थमा के शिकार हैं तो जाड़े में उन्हें पोषक तत्त्वों से भरपूर भोजन दें। अस्थमा के रोगी बढ़ रहे हैं लेकिन लोगों में जागरूकता पहले से अधिक है। लोग सही समय पर इलाज करा कर स्वस्थ भी हो रहे हैं इसलिए इस बीमारी में पहले से कुछ कमी भी आई है। मेरे पास ऐसे कई मरीज आते हैं जो इस बीमारी को टालने के मूड में होते हैं। उन्हें समझाने के लिए काउंसलिंग करनी पड़ती है। उन्हें लगता है कि अस्थमा, बाद में टीबी का रूप ले लेगा जबकि ऐसा होता नहीं है। अस्थमा और ब्रोंकाइटिस में काफी अंतर है। अस्थमा अधिकतर एलर्जी से होता है जबकि ब्रोंकाइटिस धूम्रपान करने की वजह से अधिक होता है। सही मात्रा में दवाएं लेना ही इस का इलाज है।
बढ़ते प्रदूषण में रखें खयाल:- बदलते मौसम और बढ़ते प्रदूषण में अपने शरीर का खयाल रखना बहुत जरूरी है। खासकर अस्थमा के मरीजों को ज्यादा ध्यान रखने की जरूरत होती है। कुछ सावधानी बरतने से आप घर में इस के खतरनाक प्रभावों को कम कर सकते हैं। प्रदूषित हवा से बचने के लिए काफी छोटीछोटी बातों का ध्यान रखना जरूरी है। जैसे घर की साफसफाई समय से करें, सोने से पहले स्टीम लें ताकि दिनभर की गंदगी फेफड़ों से निकल जाए, बाहर के खाने से पूरी तरह से दूर रहें, घर पर बनी चीजें ज्यादा से ज्यादा खाएं। इन सब चीजों से आप अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा सकेंगे और बीमारियों से दूर रहेंगे। कैसे बचें…
घर से मास्क लगा कर ही निकलें।
सुबह के वक्त काफी स्मौग रहता है। इस की वजह अकसर रात के वातावरण में जमा धुएं का न छंट पाना होता है जो सुबह की धुंध में मिल कर स्मौग बना देता है। सर्दी में ऐसा अकसर होता है, इसलिए बेहतर होगा भोर के बजाय धूप निकलने के बाद सैर के लिए वाक पर जाएं।
सर्दी में जहां वायु प्रदूषण ज्यादा रहता है वहीं लोग पानी भी कम पीते हैं। यह खतरनाक साबित होता है। दिन में तकरीबन 4 लिटर तक पानी जरूर पिएं। -घर से बाहर निकलते वक्त भी पानी पिएं। इस से शरीर में औक्सीजन की आपूर्ति सही बनी रहेगी और वातावरण में मौजूद जहरीली गैस अगर रक्त तक पहुंच भी जाएगी तो वह कम नुकसान पहुंचा पाएंगी।
नाक के भीतर के बाल हवा में मौजूद बड़े धूल कणों को शरीर के भीतर जाने से रोक लेते हैं।
अस्थमा और दिल के मरीज अपनी दवाएं नियमित तौर से लें। कहीं बाहर जाने पर दवा या इनहेलर साथ ले जाएं और डोज मिस न होने दें। ऐसा होने पर अस्थमा के अटैक का खतरा रहता है।
साइकिल से चलने वाले लोग भी मास्क लगाएं। चूंकि वे हैल्मेट नहीं लगाते, इसलिए उन के फेफड़ों तक बुरी हवा आसानी से पहुंच जाती है।
घर का प्रदूषण…
किचन में लगे एग्जौस्ट फैन को देखें। अगर उस पर ज्यादा कालिख जम रही है तो समझ जाएं कि किचन में हवा नुकसानदायक स्तर तक बढ़ चुकी है। -एयरकंडीशनर का फिल्टर और पीछे की तरफ की वैंट में अगर ज्यादा धूल या कालिख जमा हो रही है तो यह इस बात की ओर इशारा है कि घर बुरी हवा के निशाने पर है।
व्यस्त हाइवे या सड़कों के किनारे बने मकान, कारखानों के करीब बने मकानों में स्वाभाविक तरीके से धूल और मिट्टी के साथ कार्बन पार्टिकल पहुंच जाते हैं।
क्या करें:- किचन में इलैक्ट्रौनिक चिमनी लगवाएं और बेहतर वैंटिलेशन रखें ताकि खाना बनाते वक्त धुआं घर में न फैले। अगर घर के आसपास व्यस्त रोड या कारखाने हों तो खिड़कीदरवाजों को हैवी ट्रैफिक के समय बंद रखें। इस से भले ही पूरा बचाव न हो लेकिन धूलमिट्टी कम से कम घर में घुस पाएगी। स्मौग है
खतरनाक:- स्मौग शब्द स्मोक और फौग से मिल कर बना है। जब वातावरण में मौजूद धुआं फौग के साथ मिल जाता है तब स्मौग कहलाता है। गरमी में वातावरण में पहुंचने वाला स्मोक ऊपर की ओर उठ जाता है। जबकि ठंड में ऐसा नहीं हो पाता और धुएं व धुंध का एक जहरीला मिश्रण तैयार हो कर सांसों में पहुंचने लगता है। स्मौग कई मानों में स्मोक और फौग दोनों से ज्यादा खतरनाक होता है। हवा में मौजूद 8 खलनायक
1. पीएम 10: पीएम का मतलब होता है पार्टिकल मैटर। इन में शामिल हैं हवा में मौजूद धूल, धुआं, नमी, गंदगी आदि, जैसे 10 माइक्रोमीटर तक के पार्टिकल। इन से होने वाला नुकसान ज्यादा परेशान करने वाला नहीं होता।
2. पीएम 2.5: 2.5 माइक्रोमीटर तक के ये पार्टिकल साइज में बड़े होने की वजह से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं।
3. एनओ2: यह नाइट्रोजनऔक्साइड है। यह वाहनों से निकलने वाले धुएं में पाई जाती है।
4. एसओ2: सल्फरडाईऔक्साइड गाडि़यों और कारखानों से निकलने वाले धुएं से निकल कर यह फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंचाती है।
5. सीओ: यह कार्बनमोनोऔक्साइड है। गाडि़यों से निकल कर यह फेफड़ों को घातक नुकसान पहुंचाती है।
6. ओ3: इसे ओजोन कहते हैं। दमे के मरीजों के लिए बहुत नुकसानदेह होता है।
7. एनएच3: यह अमोनिया है। फेफड़ों और पूरे श्वसन तंत्र के लिए यह खतरनाक होता है।
8. पीबी: लेड, गाडि़यों से निकलने वाले धुएं के अलावा मैटल इंडस्ट्री से भी निकल कर यह लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचाने वाला सब से खतरनाक मैटल हैं।