झांसी, उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित भगवान कृष्ण के प्रसिद्ध कुंज बिहारी मंदिर के प्रति लोगों की आस्था और विश्वास जितना अटल और मजबूत है यह मंदिर उतनी की मजबूती के साथ पिछले लगभग 280 साल से सर्वधर्म सम्भाव के प्रतीक के रूप में वीरांगना नगरी के लोगों के बीच समरसता का प्रसार कर रहा है।
मंदिर के महाराज महंत राधामोहन दास ने गुरूवार को “ यूनीवार्ता” के साथ खास बातचीत में जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिर में होने वाले आयोजनों और इस मंदिर के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जहां आज कुंज बिहारी मंदिर है यहां लगभग 400 साल पहले आश्रम हुआ करता था। इस आश्रम में 1740 के बाद स्वामी श्री कुंज बिहारी दास ने मंदिर की नींव रखी थी। इसके बाद से छह गुरू मंदिर की गद्दी पर विराजमान हो चुके हैं। मंहत राधामोहन दास की सातवीं गद्दी है। कुंज बिहारी मंदिर में वृंदावन की बांके बिहारी मंदिर की परंपरा का ही पालन किया जाता है और उसी के अनुसार सभी आयोजन भी किये जाते हैं।
उन्होंने बताया कि आज का मंदिर परिसर क्षेत्र कभी जंगल में आतिया ताल के बीच बना एक टापू था जहां स्थित आश्रम में कल्लनशाह, खाकी शाह ,जीवन शाह और कुंज बिहारी दास आकर भक्ति का संचार किया करते थे। तभी से यह स्थान प्रेम और सौहार्द का केंद्र है। बाद में इसी आश्रम में कुंज बिहारी मंदिर की स्थापना हुई। इस मंदिर में सभी जाति और संप्रदाय के लोग आते हैं जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोग भी शामिल हैं। झांसी के बड़े कलाकार गौ मुश्ताक भी मंदिर में लगातार यहां हाजिरी लगाते थे। यह मंदिर वर्षों से वीरांगना नगरी में सांप्रदायिक समरता का बड़ा प्रतीक है।
महंत राधामोहनदास ने बताया कि जन्माष्टमी के दिन मंदिर में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। सुबह ठाकुर जी का अभिषेक और इसके बाद श्रृंगार होगा। शाम के समय भगवान कृष्ण के बालरूप को “ पलना झांकी” के रूप में प्रस्तुत किया जायेगा। साल में एक ही बार जन्माष्टमी के दिन भगवानकृष्ण के इस बाल रूप को गर्भगृह से बाहर लाया जाता है। सुबह से ही मक्खन मिश्री का प्रसाद भक्तों के लिए वितरित किया जायेगा,शास्त्रीय संगीत का आयोजन होगा और 108 दीपदान किया जायेगा।
उन्होंने बताया कि मंदिर में किसी तरह से भक्तों से दान आदि लेने का नियम नहीं है। मंदिर का काम भक्तों द्वारा अपनी इच्छा से की गयी सेवा से ही चलता है ।