नई दिल्ली, कार्यपालिका और न्यायपालिका की भूमिकाओं के बीच अंतर को रेखांकित करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि जनता का धन कैसे खर्च किया जाए, इसकी मंजूरी देने का अधिकार केवल संसद को है और वही यह कानून बना सकती है कि सांसदों को कितनी पेंशन दी जा सकती है।
राज्यसभा में आज जेटली ने कहा यह एक निर्विवाद संवैधानिक रूख है कि जनता का धन संसद की मंजूरी के बाद ही खर्च किया जा सकता है। इसलिए, केवल संसद ही यह तय कर सकती है कि जनता का धन कैसे खर्च किया जा सकता है। कोई अन्य संस्थान इस अधिकार का उपयोग नहीं कर सकता। यह बात जेटली ने तब कही जब सदस्यों ने उच्चतम न्यायालय की इस कथित टिप्पणी का मुद्दा उठाया कि 80 फीसदी पूर्व सांसद करोड़पति हैं।
वित्त मंत्री ने कहा यह तय करने का विशेष अधिकार संसद को है कि सरकारी पेंशन लेने का हकदार कौन है और कितनी पेंशन लेने का हकदार है। यह संवैधानिक रूख है जिसे प्रत्येक संस्थान को स्वीकार करना होगा। इससे पहले सपा के नरेश अग्रवाल ने व्यवस्था के प्रश्न के माध्यम से यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि सांसदों की छवि इस तरह की बन रही है मानो उनको काम किए बिना ही, वेतन और पेंशन के तौर पर भारी भरकम धन राशि मिल रही है। कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा कि समाचार पत्र में प्रकाशित उस सर्वे को पढ़ कर वह हतप्रभ रहे गए जिसमें कहा गया है कि 80 फीसदी पूर्व सांसद करोड़पति हैं।
उप सभापति पीजे कुरियन ने उनसे कहा कि वह न्यायपालिका की आलोचना न करें और अदालतों में इसका समाधान तलाशें। रमेश ने कहा कि कार्यकाल खत्म हो जाने के बाद वर्तमान 80 फीसदी सांसद भी करोड़पति नहीं होंगे। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कथित तौर पर कहा था कि सांसदों को मिलने वाली पेंशन और अन्य सुविधाएं प्रथम दृष्टया जायज नहीं लगतीं। साथ ही न्यायालय ने केंद्र सरकार और भारत के चुनाव आयोग से उस अपील पर जवाब मांगा जिसमें सांसदों को दी जाने वाली पेंशन और अन्य सुविधाएं रद्द करने की मांग की गई थी। न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर की अगुवाई वाली पीठ ने इस मुद्दे पर गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी द्वारा की गई अपील पर लोकसभा और राज्यसभा के महासचिव को नोटिस भी जारी किए हैं।