नयी दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश विदेश में भारत की सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरण के संरक्षण एवं संवर्द्धन को लेकर किये जा रहे प्रयासों की सराहना करते हुए आज आह्वान किया कि नयी एवं नवान्वेषी सोच वाले ऐसे प्रयासों को जनान्दोलन बनाया जाना चाहिए।
श्री मोदी ने आकाशवाणी पर अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में लोगों का यह आह्वान किया। उन्होंने कार्यक्रम में यूरोप के एक प्राचीन देश यूनान के इलिया कस्बे में एक स्कूल के बच्चों के एक वीडियो को साझा किया जिसमें वे बच्चे ‘वंदे मातरम्’ का गान कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, “इन्होंने जिस खूबसूरती और भाव के साथ ‘वंदे मातरम्’ गाया है वो अद्भुत और सराहनीय है। ऐसे ही प्रयास दो देशों के लोगों को और करीब लाते हैं। मैं यूनान के इन छात्र- छात्राओं और उनके शिक्षकों का अभिनन्दन करता हूँ। आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान किये गए उनके प्रयास की सराहना करता हूँ।”
प्रधानमंत्री ने भारत के प्राचीन ग्रंथों और सांस्कृतिक मूल्यों को दुनियाभर में लोकप्रिय बनाने की कोशिश में जुटे पुणे के भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि इस संस्थान ने दूसरे देशों के लोगों को महाभारत के महत्व से परिचित कराने के लिए ऑनलाइन कोर्स शुरू किया है। ये कोर्स भले अभी शुरू किया गया है लेकिन इसमें जो पाठ्यसामग्री पढ़ायी जाती है उसे तैयार करने की शुरुआत सौ साल से भी पहले हुई थी। जब इस संस्थान ने इससे जुड़ा कोर्स शुरू किया तो उसे जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली। उन्होंने कहा कि लोगों को पता चलना चाहिए कि हमारी परंपरा के विभिन्न पहलुओं को किस प्रकार आधुनिक तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है। सात समंदर पार बैठे लोगों तक इसका लाभ कैसे पहुंचे, इसके लिए भी नवान्वेषी तरीके अपनाए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि आज दुनियाभर में भारतीय संस्कृति के बारे में जानने को लेकर दिलचस्पी बढ़ रही है। अलग-अलग देशों के लोग ना सिर्फ हमारी संस्कृति के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं बल्कि उसे बढ़ाने में भी मदद कर रहे हैं। सर्बिया में ऐसे ही एक विद्धान डॉ. मोमिर निकिच हैं जिन्होंने एक द्विभाषी संस्कृति सर्बियाई भाषा का शब्दकोश तैयार किया है। इस शब्दकोश में शामिल किए गए संस्कृत के 70 हजार से अधिक शब्दों का सर्बियन भाषा में अनुवाद किया गया है। डॉ० निकिच ने 70 वर्ष की उम्र में संस्कृत भाषा सीखी है। उनका कहना है कि इसकी प्रेरणा उन्हें महात्मा गांधी के लेखों को पढ़कर मिली। इसी प्रकार का उदाहरण मंगोलिया के 93 साल के प्रोफ़ेसर जे. गेंदेधरम का भी है। पिछले चार दशकों में उन्होंने भारत के करीब 40 प्राचीन ग्रंथों, महाकाव्यों और रचनाओं का मंगोलियन भाषा में अनुवाद किया है।
श्री मोदी ने कहा कि अपने देश में भी इस तरह के जज्बे के साथ बहुत लोग काम कर रहे हैं। गोवा के सागर मुले जी सैकड़ों वर्ष पुरानी ‘कावी’ चित्रकला को लुप्त होने से बचाने में जुटे हैं जिसमें प्राचीन काल में लाल मिट्टी का प्रयोग किया जाता था। ‘कावी’ चित्रकला भारत के प्राचीन इतिहास को अपने आप में समेटे है। गोवा में पुर्तगाली शासन के दौरान वहाँ से पलायन करने वाले लोगों ने दूसरे राज्यों के लोगों का भी इस अद्भुत चित्रकला से परिचय कराया। समय के साथ ये चित्रकला लुप्त होती जा रही थी। लेकिन श्री सागर मुले जी ने इस कला में नई जान फूँक दी है। उनके इस प्रयास को भरपूर सराहना भी मिल रही है।
उन्होंने कहा कि एक छोटी सी कोशिश, एक छोटा कदम भी, हमारे समृद्ध कलाओं के संरक्षण में बहुत बड़ा योगदान दे सकता है। अगर हमारे देश के लोग ठान लें, तो देशभर में हमारी प्राचीन कलाओं को सजाने, संवारने और बचाने का जज्बा एक जन-आंदोलन का रूप ले सकता है। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे देशभर में होने वाले इस तरह के अनेक प्रयासों की जानकारी नमो ऐप के ज़रिये उन तक जरुर पहुँचाएँ।
इसी प्रकार से पर्यावरण एवं वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों को उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश के लोगों ने साल भर से एक अनूठा अभियान “अरुणाचल प्रदेश एयरगन सरेंडर अभियान” चला रखा है। इस अभियान में लोग स्वेच्छा से अपनी एयरगन सरेंडर कर रहे हैं ताकि अरुणाचल प्रदेश में पक्षियों का अंधाधुंध शिकार रुक सके। उन्होंने कहा कि अरुणाचल प्रदेश पक्षियों की 500 से भी अधिक प्रजातियों का घर है। इनमें कुछ ऐसी देसी प्रजातियाँ भी शामिल हैं, जो दुनिया में कहीं और नहीं पाई जाती हैं। लेकिन धीरे-धीरे जब जंगलों में पक्षियों की संख्या में कमी आने लगी तो इसे सुधारने के लिए ही एयरगन सरेंडर अभियान चलाया गया है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ महीनों में पहाड़ से मैदानी इलाकों तक, एक समुदाय से लेकर दूसरे समुदाय तक, राज्य में हर तरफ लोगों ने इसे खुले दिल से अपनाया है। अरुणाचल प्रदेश के लोग अपनी मर्जी से अब तक 1600 से ज्यादा एयरगन सरेंडर कर चुके हैं जिसके लिए वे प्रशंसा और अभिनन्दन के पात्र हैं।
प्रधानमंत्री ने उन्हें प्राप्त हुए स्वच्छता एवं स्वच्छ भारत के सुझावों एवं संदेशों को साझा करते हुए कहा कि स्वच्छता का ये संकल्प अनुशासन से, सजगता से, और समर्पण से ही पूरा होगा। हम एनसीसी कैडेट्स द्वारा शुरू किए गये पुनीत सागर अभियान में भी इसकी झलक देख सकते हैं। इस अभियान में 30 हज़ार से अधिक एनसीसी कैडेट्स ने समुद्र तटों पर सफाई की और वहाँ से प्लास्टिक कचरा हटाकर उसे रिसाइकिलिंग के लिए इकट्ठा किया। उन्होंने कहा कि हमारे समुद्रतट, हमारे पहाड़ ये हमारे घूमने लायक तभी होते हैं जब वहाँ साफ सफाई हो। बहुत से लोग किसी जगह जाने का सपना ज़िन्दगी भर देखते हैं, लेकिन जब वहाँ जाते हैं तो जाने-अनजाने कचरा भी फैला आते हैं। ये हर देशवासी की ज़िम्मेदारी है कि जो जगह हमें इतनी खुशी देती हैं, हम उन्हें अस्वच्छ न करें।
उन्होंने ‘साफवाटर’ नाम से काम कर रहे एक स्टार्ट अप का उल्लेख करते हुए कहा कि कुछ युवाओं द्वारा शुरु ये स्टार्ट अप कृत्रिम मेधा यानी आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस और इंटरनेट ऑफ थिंग्स की मदद से लोगों को उनके इलाके में पानी की शुद्धता और गुणवत्ता से जुड़ी जानकारी देगा। ये स्वच्छता का ही तो एक अगला चरण है। लोगों के स्वच्छ और स्वस्थ भविष्य के लिए इस स्टार्ट अप की अहमियत को देखते हुए इसे एक वैश्विक अवार्ड भी मिला है।
श्री मोदी ने कहा कि ‘एक कदम स्वच्छता की ओर’ इस प्रयास में संस्थाएँ हो या सरकार, सभी की महत्वपूर्ण भूमिका है। पहले सरकारी दफ्तरों में पुरानी फाइलों और कागजों का कितना ढ़ेर रहता था। जब से सरकार ने पुराने तौर-तरीकों को बदलना शुरु किया है, ये फाइल्स और कागज के ढेर डिजीटाइज़ होकर कंप्यूटर के फोल्डरों में समाते जा रहे हैं। जितने पुराने और लंबित कागज़ात हैं, उन्हें हटाने के लिए मंत्रालयों और विभागों में विशेष अभियान भी चलाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस अभियान से कुछ बड़ी ही दिलचस्प चीज़ें हुई हैं। डाक विभाग में जब ये सफाई अभियान चला तो वहाँ का कबाड़खाना पूरी तरह खाली हो गया जिसे अब कैफेटेरिया में बदल दिया गया है। एक और कबाड़खाना दो पहिया वाहनों की पार्किंग में बदल गया है। इसी तरह पर्यावरण मंत्रालय ने अपने खाली हुए कबाड़खाने को वेल्नेस सेंटर में बदल दिया।
उन्होंने बताया कि शहरी कार्य मंत्रालय ने तो एक स्वच्छ एटीएम भी लगाया है। इसका उद्धेश्य है कि लोग कचरा दें और बदले में नकद पैसा लेकर जाएँ। नागर विमानन मंत्रालय के विभागों ने पेड़ों से गिरने वाली सूखी पत्तियों और जैविक कचरे से जैविक कम्पोस्ट खाद बनाना शुरु किया है। ये विभाग अनुपयोगी कागज़ से स्टेशनरी बनाने का काम कर रहा है। हमारे सरकारी विभाग भी स्वच्छता जैसे विषय पर इतने नवान्वेषी हो सकते हैं। कुछ साल पहले तक किसी को इसका भरोसा भी नहीं होता था, लेकिन, आज ये व्यवस्था का हिस्सा बनता जा रहा है। यही तो देश की नई सोच है जिसका नेतृत्व सारे देशवासी मिलकर कर रहे हैं।