वाशिंगटन, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से अमेरिका को अलग करने के फैसले की आज घोषणा की और उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती ओबामा प्रशासन के दौरान 190 देशों के साथ किए गए इस समझौते पर फिर से बातचीत करने की जरूरत है। चीन और भारत जैसे देशों को पेरिस समझौते से सबसे ज्यादा फायदा होने की दलील देते हुए ट्रंप ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर समझौता अमेरिका के लिए अनुचित है क्योंकि इससे उद्योगों और रोजगार पर बुरा असर पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत को पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी करने के लिए अरबों डॉलर मिलेंगे और चीन के साथ वह आने वाले कुछ वर्षों में कोयले से संचालित बिजली संयंत्रों को दोगुना कर लेगा और अमेरिका पर वित्तीय बढ़त हासिल कर लेगा। व्हाइट हाउस के रोज गार्डन से बहु प्रत्याशित फैसले की घोषणा करते हुए ट्रंप ने कहा कि उन्हें पिट्सबर्ग का प्रतिनिधित्व करने के लिए निर्वाचित किया गया है ना कि पेरिस का। उन्होंने कहा कि वह अमेरिका के कारोबारी और कामगारों के हितों की रक्षा करने के लिए यह निर्णय ले रहे हैं।
उन्होंने कहा, मैं हर दिन इस देश के अच्छे लोगों के लिए लड़ रहा हूं। अतः अमेरिका और उसके नागरिकों की रक्षा करने के अपने गंभीर कर्तव्य को पूरा करने के लिए अमेरिका पेरिस जलवायु समझौते से हटेगा लेकिन उन शर्तों के साथ पेरिस समझौते या पूरी तरह से नए समझौते पर बातचीत शुरू करेगा जो अमेरिका, उसके उद्योगों, कामगारों, लोगों और करदाताओं के लिए उचित हों। ट्रंप ने कहा, हम इससे बाहर हो रहे हैं लेकिन फिर से बातचीत शुरू करेंगे और हम देखेंगे कि क्या हम एक ऐसा समझौता कर सकते हैं जो उचित हो।
अगर हम कर सकें तो यह अच्छा होगा और अगर नहीं कर सकें तो भी कोई बात नहीं। राष्ट्रपति के तौर पर मैं अमेरिकी नागरिकों के भले से पहले किसी और चीज के बारे में नहीं सोच सकता। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, पेरिस जलवायु समझौता इस बात का हालिया उदाहरण है कि अमेरिका ने ऐसा समझौता किया जो अमेरिका के लिए नुकसानदायक है, अन्य देशों के लिए अत्यधिक लाभदायक है, जिससे अमेरिकी कामगार जिन्हें मैं प्यार करता हूं और करदाताओं को कम होती नौकरियों, कम वेतन, बंद होती फैक्टरियों और बेहद कम आर्थिक उत्पादन के रूप में कीमत चुकानी पड़ रही है।
ट्रंप ने कहा कि आज से अमेरिका पेरिस समझौते के सभी कार्यान्वयन और इस समझौते से अमेरिका पर पड़ने वाले कठोर वित्तीय और आर्थिक बोझ का पालन करना बंद कर देगा। इसमें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान और खासतौर से हरित जलवायु निधि के कार्यान्वयन को समाप्त करना शामिल है जिससे अमेरिका को उसके भविष्य का एक बड़ा हिस्सा चुकाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि नेशनल इकोनॉमिक रिसर्च एसोसिएट्स के मुताबिक, पेरिस समझौते की शर्तों और कठोर ऊर्जा प्रतिबंधों का पालन करने से अमेरिका में वर्ष 2025 तक 27 लाख नौकरियों में कमी आ सकती है।
ट्रंप ने कहा कि दूसरी ओर भारत और चीन को जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते से सबसे ज्यादा फायदा हो रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि दुनिया के प्रमुख प्रदूषक देशों पर सार्थक अनुबंध नहीं लगाए गए। उदाहरण के लिए इस समझौते के तहत चीन 13 साल की बड़ी अवधि तक इन उत्सर्जनों को बढ़ाने में सक्षम हो जाएगा। उन्होंने कहा, वे 13 वर्षों तक जो चाहते हैं वो कर सकते हैं लेकिन हम नहीं। ट्रंप ने कहा, भारत विकसित देशों से विदेशी सहायता में अरबों डॉलर लेकर अपनी भागीदारी करता है। और भी कई अन्य उदाहरण हैं। लेकिन पेरिस समझौते की आधार बात है कि यह शीर्ष स्तर पर अमेरिका के लिए अनुचित है।
उन्होंने कहा कि चीन को सैंकड़ों अतिरिक्त कोयला संयंत्र बनाने की अनुमति मिल जाएगी। उन्होंने कहा, इस समझौते के अनुसार हम संयंत्र नहीं बना सकते लेकिन वे बना सकते हैं। वर्ष 2020 तक भारत का कोयला उत्पादन दोगुना हो जाएगा। इसके बारे में सोचें। भारत अपना कोयला उत्पादन दोगुना कर सकता है। यहां तक कि यूरोप कोयला संयंत्र का निर्माण जारी रख सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति के मुताबिक, संक्षिप्त में यह समझौता कोयला रोजगार खत्म नहीं करता। यह सिर्फ उन नौकरियों को अमेरिका से बाहर करता है और उन्हें विदेशों की ओर ले जाता है।
उन्होंने कहा, यह समझौता जलवायु के बारे में कम है और अमेरिका पर अन्य देशों द्वारा वित्तीय बढ़त हासिल करने के बारे में ज्यादा है। उन्होंने कहा, जब हमने पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे तो पूरी दुनिया ने तारीफ की थी। वे अति उत्साहित हो गए थे। वे काफी खुश थे। इसकी बेहद आसान वजह यह थी कि इससे हमारे देश अमेरिका, जिसे हम सब प्यार करते हैं, को बहुत-बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ। उधर, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते से अमेरिका को अलग करने के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के फैसले की निन्दा की है।