नई दिल्ली,इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) में छात्रसंघ का चुनाव इस बार होना मुश्किल है. विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रसंघ की जगह छात्र परिषद लाने की तैयारी में है.
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रशासन ने छात्रसंघ चुनाव समाप्त करने का फैसला किया है. प्रशासन ने विश्वविद्यालय में छात्र परिषद व्यवस्था लागू करने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में शपथ-पत्र दाखिल किया है. विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपने इस फैसले को लिंगदोह कमिटी की सिफारिशों के अनुरूप बताया है. बता दें कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव के दौरान कई बार उपद्रव हो चुका है. इससे पहले साल 2005 में विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव पर बैन भी लगाया जा चुका है.
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पीआरओ चितरंजन कुमार ने बताया कि विश्वविद्यालय ने स्टूडेंट काउंसिल की व्यवस्था लागू करने का फैसला करते हुए कोर्ट को इसकी जानकारी दी है. बता दें कि लिंगदोह कमिटी की सिफारिश के क्लॉज 6.1.2 के अंतर्गत यह कहा गया है कि जहां विश्वविद्यालय परिसर का माहौल अशांत हो या शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव की संभावना न हो वहां छात्र परिषद की व्यवस्था की जाए. सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनने के बाद से इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिसर में कई बार उपद्रव हो चुका है.
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साल 2005 में स्टूडेंट यूनियन के चुनाव में अजीत यादव की जीत के बाद यह तथ्य सामने आया था कि उसने अपने शैक्षिक रेकॉर्डों में हेरफेर किया था. इसे लेकर काफी बवाल हुआ था. इसके बाद ही तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर राजेंद्र हर्षे ने विश्वविद्यालय में छात्रसंघ व्यवस्था को समाप्त कर दिया था. इसके बाद 7 साल तक छात्रसंघ चुनाव नहीं हुए थे. पीआरओ के मुताबिक विश्वविद्यालय प्रशासन प्रजातांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ नहीं है लेकिन शांतिपूर्वक शैक्षिक माहौल उसकी पहली जिम्मेदारी है इसलिए स्टूडेंट काउंसिल व्यवस्था लागू करने का फैसला लिया गया है.
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कुमार ने कहा कि छात्र संघ चुनाव को धनबल और बाहुबल से मुक्त कराने के लिए ही सुप्रीम कोर्ट ने लिंगदोह कमिटी की संस्तुति देश भर में लागू की थी. उन्होंने बताया कि लिंगदोह कमिटी ने छात्रसंघ चुनाव के लिए दो मॉडल की सिफारिश की थी. कमिटी ने जेएनयू और हैदराबाद जैसे छोटे विश्वविद्यालय कैम्पस के लिए प्रत्यक्ष मतदान की बात कही है. उन्होंने कहा कि लिंगदोह द्वारा अशांत माहौल की स्थिति में और बड़े कैम्पस के लिए स्पष्ट तौर पर छात्र परिषद का निर्देश दिया गया है. 17 मई 2019 को विश्वविद्यालय ने इस आशय का हलफनामा हाई कोर्ट में दाखिल किया था, जिस पर न्यायालय ने गंभीरता पूर्वक विचार किया.