उत्तर प्रदेश में पहले चरण में, गठबंधन और भाजपा में कड़ा मुकाबला
April 10, 2019
लखनऊ , उत्तर प्रदेश में लोकसभा के पहले चरण के चुनाव में गरीब, किसान और बेरोजगारी के मुद्दे तथा दलित और अल्पसंख्यक मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। पहले चरण में सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर में मंगलवार शाम पांच बजे चुनाव प्रचार थम गया। इस चरण में मतदान 11 अप्रैल को होगा।
पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने सभी आठ सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन पिछले साल कैराना में हुये उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़े राष्ट्रीय लोकदल प्रत्याशी के हाथों भाजपा को हार का सामना करना पडा था सपा.बसपा.रालोद गठबंधन से इस बार भाजपा को तगड़ी चुनौती मिलने के अनुमान है जबकि अकेले दम पर चुनाव मैदान पर डटी कांग्रेस, भाजपा के साथ साथ गठबंधन प्रत्याशियों के हार जीत के समीकरणों पर उलटफेर कर सकती है।
बसपा का मजबूत गढ़ माने जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक और जाट के अलावा दलित निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं । राज्य के पश्चिमी हिस्से में सपा से ज्यादा सीटों पर बसपा उम्मीदवार हैं। सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और मेरठ में अच्छी संख्या में अल्पसंख्यक मतदाता है । जिनके विभाजन की आशंका के मद्देनजर बसपा मुखिया मायावती ने सहारनपुर में हुयी रैली में अपील की थी जिसके लिये उनके खिलाफ चुनाव आचार संहिता के उल्लघंन का मामला दर्ज किया गया था।
कांग्रेस ने इन आठ सीटों पर मजबूत प्रत्याशियों को चुनाव मैदान पर उतारा है। पिछले चुनाव में सहारनपुर में कांग्रेस के इमरान मसूद ने भाजपा के राघव लखनपाल को तगड़ी चुनौती दी थी। इस चुनाव में भी दोनो के बीच कड़ा मुकाबला दिख रहा है। कांग्रेस की सभाओं में उमड़ी भीड़ जहां गठबंधन को परेशान कर रही है वहीं मुस्लिम मतों के विभाजन की आशंका से उत्साहित भाजपा के नेताओं ने इस चरण में मतों के ध्रुवीकरण की हर मुमकिन काेशिश की है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने यहां जनसभायें कर पार्टी के पक्ष में माहौल बनाया वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस क्षेत्र में ताबड़तोड़ रैलियां की। राजनीतिक समीकरणों में उलटफेर करने की कुव्वत रखने वाले भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद ने भी बसपा अध्यक्ष को परेशान करने में कोई कोताही नहीं बरती है। दलित राजनीति में इस नये चेहरे से बसपा मुखिया असहज दिख रही है और अपनी हर जनसभा में साफ हिदायत देती है ।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में खासा दखल रखने वाली रालोद इस बार सिर्फ तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है जिसमें से दो पर रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह और उनके पुत्र एवं पार्टी उपाध्यक्ष जयंत चौधरी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। किसानों के सच्चे हितैषी होने का दावा करने वाले पिता पुत्र की जोड़ी का राजनीतिक भविष्य अन्नदाताओं के हाथ में है ।