नई दिल्ली, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) के कमांडों ने अमेरिका और इजरायल सहित 12 देशों के साथ मिलकर आतंकियों और नक्सलियों द्वारा विस्फोट करने के विभिन्न तरीकों से निपटने की आधुनिक तकनीकों का प्रशिक्षण लिया।
देश में जब भी कोई आतंकी घटना होती है तब ब्लैक कैट कमांडो हवा और जमीन पर अपहरण हैंडलिंग, बम खोज, पहचान और आईइडी के निराकरण और विशेष परिस्थितियों में आतंकवादियों को निष्क्रिय करने, बंधक बचाव कार्य में उस स्थिति से निजात दिलाने में अहम भूमिका निभाते हैं। वर्तमान में आतंकी नए नए तरीके के आईइडी का इस्तेमाल करते हैं।
कमांडो के द्वारा नेशनल बम डाटा सेंटर में वो तमाम आईइडी और उसका इस्तेमाल कैसे आतंकी और नक्सली करते हैं इसकी जानकारी लेते हुए इसके निराकरण का अभ्यास किया। अमेरिका और इजरायल सहित 12 देश के 40 डेलीगेट्स इस अभ्यास में शामिल हुए हैं। अलग-अलग देशों में किस तरीके से आतंकी विस्फोटक का इस्तेमाल करते हैं उस पर हुई बैठक में आईएसआईएस के खतरे और आतंकियों द्वारा प्रयोग विस्फोटक पर खास चर्चा हुई। सबसे नया विस्फोटक जिसका इस्तेमाल आतंकी कर रहे हैं वो फूड डाई या फूड कलरिंग जो आसानी से बाजार में मिल जाता है। इस पर अमेरिका ने चिंता जताई है। यही नहीं एनबीडीसी के सीनियर अधिकारी मेजर जनरल बिपिन बक्शी ने कहा कि भारत के बाजार में खुले तौर पर मिलने वाले विस्फोटक इस समय बड़े खतरे के तौर पर देखा जा रहा है। उल्लेखनीय है देश के 10 नक्सल प्रभावित राज्यों में नक्सली सुरक्षा बलों को निशाना बनाने के लिए विस्फोट करने की नई-नई तकनीक का इस्तेमाल करने में जुटे हुए हैं। नक्सली नारियल के अंदर बम फिट तो करते ही हैं साथ ही ये लोग अब प्रोजेक्टाइल आईईडी का भी इस्तेमाल करने लगे हैं। एनएसजी के जवानों ने इन्हीं आतंकी और नक्सलियों के आईईडी प्रयोग करने के खतरे को देखते हुए अमेरिका और इजरायल के साथ मिलकर इस खतरे की बारीकियों के बारे जानकारी हासिल की। नक्सली अब आतंकी विस्फोट के लिए कर रहे हैं नए-नए आईईडी का इस्तेमाल, हवाई जहाज को अगर कोई हाईजेक करता है तो आतंकियों की लोकेशन जानने के लिए खास तरीके के कैमरे का इस्तेमाल किया जा रहा है। एनएसजी जल्द ही इन कैमरों का इस्तेमाल करेगी। उल्लेखनीय है कि एनएसजी भारत की एक विशेष प्रतिक्रिया यूनिट है जिसका मुख्य रूप से आतंकवाद विरोधी गतिविधियों के लिए उपयोग किया गया है। इसका गठन भारतीय संसद के राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड अधिनियम के तहत कैबिनेट सचिवालय द्वारा 1986 में किया गया था। यह पूरी तरह से केन्द्रीय अर्द्धसैनिक बल के ढांचे के भीतर काम करता है।