दलित आंदोलनों से मीडिया, क्यों कर रहा अछूतों जैसा व्यवहार

dead cowलखनऊ, एक कहावत है – रोम सुलग रहा था और नीरो बंशी बजा रहा था। यह कहावत रोम मे सही सिद्ध हुई हो या नही पर भारत मे मीडिया, दलित आंदोलनों के साथ बिल्कुल नीरो की तरह ही व्यवहार कर रहा है। गुजरात मे मरी हुयी गाय की खाल निकाल रहे दलित युवकों की गोरक्षकों द्वारा बेरहमी से पिटाई का वीडियों देख कर मानवता जहां शर्मसार हुई,वहीँ मीडिया चुप्पी साधे बैठा है। दलित युवकों के साथ कथित गोरक्षकों के बर्बरतापूर्ण व्यवहार के विरोध से जहां एक ओर गुजरात सुलग रहा है, वहीं दूसरी ओर मेन स्ट्रीम मीडिया मे इसकी चर्चा तक नही है। दलितों ने सुरेन्द्रनगर के कलेक्टर ऑफिस के सामने तीन ट्रक मृत गायों को फेंककर अपने गुस्से को एक नया रुप दे दिया है। एक असहयोग आन्दोलन की शुरुआत कर दी है।  इसी मुद्दे पर बसपा प्रमुख मायावती तक के राज्यसभा मे पूछे गये प्रश्न को भी भारतीय मीडिया ने कोई ज्यादा तवज्जो नही दी। एसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे भारतीय मीडिया इस आंदोलन से बिल्कुल  अछूतों जैसा व्यवहार कर रहा है। जबकि इस मुद्दे को लेकर विदेशी मीडिया संवेदनशील है। बीबीसी जैसी प्रतिष्ठित समाचार सेवा निरंतर गुजरात मे दलित उत्पीड़न की घटना पर समाचार दे रहा है। सोशल मीडिया  मे तो आंदोलन छा गया है।

mumbai 1वहीं दूसरी ओर  गुजरात से सैकड़ो किलोमीटर दूर मुंबई मे बाबा साहेब का बुद्ध भूषण प्रेस और आंबेडकर भवन को रात के अंधेरे में गिराए जाने के खिलाफ लोगों का गुस्सा सड़कों परउतर आया। शहर मे सबसे बड़ा जनसैलाब उमड़ पड़ा। मुम्बई मे बीजेपी सरकार द्वारा बाबा साहाब अम्बेडकर की प्रेस तोड़े जाने के विरोध में आज मुम्बई की सड़कों पर लोगों ने जोरदार प्रदर्शन हुआ। बारिश की परवाह न कर लगभग 2 लाख अम्बेकरवादीयों ने बीजेपी सरकार की जड़ें हिला दी। विरोध में बसपा अध्यक्ष बहन मायावती जी ने उच्च सदन में जोरदार आवाज बुलंद की। सोशल मीडिया और विदेशी मीडिया मे आंदोलन छा गया। लेकिन भारत के मेन स्ट्रीम मीडिया से यह आंदोलन भी गायब है।

 

 

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button