नई दिल्ली, सरकारी नौकरियों मे आरक्षण के बावजूद भागीदारी न मिल पाने से नाराज दलित- पिछड़ों को अब रोजगार के नए अवसर चाहिए। समय- समय पर कई नेता निजी क्षेत्रों में आरक्षण की मांग करते रहे हैं, पर जब वे सरकार में आते हैं, तो इस मुद्दे पर बात आगे नहीं बढ़ा पाते हैं. सबसे बड़ी बात है कि सरकारी नौकरियां अब हैं कहां? सबकुछ निजी क्षेत्र के हवाले किया जा रहा है। इसलिए निजी क्षेत्र मे, दलितों- पिछड़ों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये उन्हे निजी क्षेत्र मे आरक्षण दिये जाने की जरूरत है.
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निजी क्षेत्र मे बहुत बड़ी संख्या मे रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं. हर शहर में, बड़े उद्योगों के साथ-साथ लघु उद्योग भी बड़ी संख्या मे हैं. जिनमें ज्यादातर सरकारी सुविधाओं या छूट का उपभोग कर रहें हैं. यहां 20 से लेकर 50 कर्मी तक काम करते हैं. इन उद्योगों मे बड़ी संख्या मे,दलित- पिछड़ों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है.
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निजी क्षेत्र का बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में आता है. दलित और पिछड़ी जातियों मे ज्यादातर के जातिगत् पेशे हैं, जिनमे उन्हे विशेषग्यता हासिल है. यदि उन्हे अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिये सरकार की ओर से आर्थिक मदद मिल जाये तो वह स्वयं का पेट पालने के साथ-साथ दूसरों को भी रोजगार उपलब्ध करा सकतें हैं.
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इसी के साथ सरकार को रोजगार के नए क्षेत्रों का विस्तार करना होगा. कौशल विकास जैसे कार्यक्रमों के द्वारा दलित और पिछड़ी जातियों के युवाओं को भी जोड़ा जा सकता है. कौशल विकास कर चुके हिस्से के लिए ऐसे अवसर सुगम बनाने होंगे, जिससे वह खुद रोजगार सृजन कर सके। इसकी पेचीदगियां को दूर करने की जरूरत है. अगर इसे सुगम बनाया गया, तो इस कमजोर वर्ग को रोजगार मिलेगा उनका तेजी से विकास संभव हो सकेगा।
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