नई दिल्ली, नीति निर्माता संस्था नीति आयोग ने सरकारी प्रशासनिक तंत्र पर निर्भरता कम करने के लिए सार्वजनिक सेवाओं को निजी सेवाओं के हाथों आउटसोर्स कराने का सुझाव दिया है। नीति आयोग ने शासन तंत्र में विशेषज्ञों को शामिल करने की भी अनुशंसा की। आयोग का मानना है कि यह एक ऐसा कदम है जो स्थापित करियर नौकरशाही में प्रतिस्पर्धा लाएगा। आयोग ने हाल ही में सार्वजनिक किए गए तीन वर्षीय कार्रवाई एजेंडे की ड्राफ्ट रिपोर्ट में 2018-19 के अंत तक शासन संबंधी कामकाज को पूरी तरह से डिजिटिलाइज करने का लक्ष्य रखा है।
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ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा गया है कि सिविल सेवाएं सरकार की रीढ़ हैं और इन्हें त्वरित निर्णय लेने और उन्हें लागू करने के लिए सशक्त बनाए जाने की जरूरत है। लगातार उच्च स्तरीय प्रदर्शन को केवल तभी हासिल किया जा सकता है जब इसे अच्छे प्रदर्शन को पुरस्कृत करने और खराब को दंडित करने के निष्पक्ष पैमाने पर मापा जाएगा। वर्तमान में अर्थव्यवस्था की जटिलताओं का तात्पर्य है कि नीति निर्माण एक विशिष्ट गतिविधि है।
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इसलिए यह जरूरी है कि विशेषज्ञों को विशेष तरीके से तंत्र में शामिल किया जाए। ड्राफ्ट रिपोर्ट के अनुसार, इस तरह की एंट्री का स्थापित करियर नौकरशाही में प्रतिस्पर्धा लाने में लाभकारी प्रभाव भी आएगा। इस ड्राफ्ट को गवर्निंग काउंसिल सहित नीति आयोग के सदस्यों के बीच 23 अप्रैल को वितरित किया गया। हालांकि ये अनुशंसाएं सरकारी विभागों में उच्च स्तरीय प्रबंधन का हिस्सा भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के अधिकारियों की आलोचनाओं का शिकार बन सकती हैं।
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नीति आयोग ने कहा कि सेवाओं की आपूर्ति के लिए सरकारी प्रशासनिक तंत्र पर निर्भरता जहां तक संभव हो वहां घटाई जानी चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया, हम सेवाएं प्रदान करने के लिए निजी चौनलों को मंजूरी देने के लिए आधार से जुड़ी पहचान सत्यापन सेवा की शक्ति का सहारा ले सकते हैं। इसमें सरकारी विभागों में सचिव स्तर के अधिकारी के लंबे कार्यकाल का पक्ष लिया गया है।
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वर्तमान में जिस वक्त अधिकारियों को अतिरिक्त सचिव के पद से सचिव स्तर पर पदोन्नत किया जाता है उस वक्त आमतौर पर उनकी सेवानिवृत्ति को दो साल या इससे भी कम वक्त बचा होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये फीचर दो प्रकार की अहम अक्षमताएं पैदा करता है। पहलाः दो वर्ष से कम समय के वक्त में अधिकारी कोई अहम कदम उठाने में हिचकिचाता है।
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और दूसरा यह कि अधिकारी किसी बड़ी परियोजना में कोई भी निर्णय लेने की इच्छा नहीं रखता। उसे लगता है कि कोई भी गलत कदम उस पर किसी का पक्ष लेने अथवा भ्रष्टाचार का आरोप लगा सकता है। रिपेार्ट के अनुसार विशेषज्ञों को तीन से पांच साल के अनुबंध पर लाया जा सकता है और इस प्रकार का तंत्र टाप टेलेंट को सरकारी तंत्र में लाने और मंत्रालय को नया आयाम देने में मदद करेगा।
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