अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार पाने वाले एंगस डीटॉन का भारत से पुराना रिश्ता रहा है.
स्कॉटलैंड के एडिनबरा में पैदा हुए और कैंब्रिज़ विश्वविद्यालय से पीएचडी करने वाले डीटॉन को ये पुरस्कार ‘खपत, ग़रीबी और कल्याण’ पर गहन शोध के लिए दिया गया है.
डीटॉन ने भारत में ग़रीबी और कुपोषण के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए काफ़ी समय भारत में बिताया है.
कैलोरी का औसत
रांची विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले ज्यां द्रेज़ के साथ डीटॉन ने फ़रवरी 2009 में एक शोधपत्र लिखा था. उसका विषय था, ‘फ़ूड एंड न्यूट्रिशन इन इंडिया: फ़ैक्ट्स एंड इंटरप्रेटेशंस.’
इस शोध पत्र में लिखा था कि आय में बढ़ोतरी और खाद्य क़ीमतें अपेक्षाकृत अधिक नहीं बढ़ने के बावजूद भारत में औसत कैलोरी की मात्रा घट रही है.
डीटॉन ने भारत के ग़रीबों में कुपोषण पर गहराई से शोध किया है. उनके मुताबिक़ साल 1983 से 2004-05 के बीच भारत के ग्रामीण इलाक़ों में प्रति कैलोरी की औसत खपत में 10 फ़ीसदी की गिरावट आई.
डीटॉन के शोध की वजह से कई सरकारों को नीतियां बनाने और उनमें सुधार करने में मदद मिली.
ज्यां द्रेज़ के साथ डीटॉन ने 2002 में भी एक पेपर लिखा था, जिसका शीर्षक था, ‘पॉवर्टी एंड इनक्वेलिटी इन इंडिया’.
यह पेपर इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में प्रकाशित हुआ था.
इसमें दोनों लेखकों ने बताया कि 1990 के दशक में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण की वजह से भारत में पोषण के स्तर को बेहतर नहीं बनाया जा सका.
इसमें यह भी कहा गया कि भारत में रहने वाले ग़रीबों की संख्या सरकार के अनुमानों से अधिक नहीं थी.
ग़रीबी का आंकड़ा
डेटा एंड डोगमा: दि ग्रेट इंडियन पॉवर्टी डिबेट’ शीर्षक से लिखे एक पेपर में डीटॉन और वैलेरी कोज़ेल ने भारत में ग़रीबों की अधिक संख्या का राजनीतिक और सांख्यकीय विश्लेषण किया.
स्टंटिंग अमांग चिल्ड्रेन में डीटॉन ने बताया कि भारत में बच्चों की लंबाई, दुनिया के औसत से भी कम है.
डीटॉन ने कोलंबिया विश्वविद्यालय के अरविंद पनगढ़िया के इस निष्कर्ष को ग़लत साबित किया कि भारत के बच्चे अनुवांशिक कारणों से नाटे हैं, उन्होंने बताया कि बच्चों का विकास कुपोषण के कारण रुक जाता है.
अरविंद पनगढ़िय़ा इस समय भारत के नीति आयोग के उपाध्यक्ष हैं.