लखनऊ, उत्तर प्रदेश में विभिन्न जिलों में भगवान भास्कर की पूजा अर्चना के महापर्व पर रविवार को महिलाओं ने अस्ताचली सूर्य को पूरे श्रद्धाभाव से अर्घ्य दिया।
प्रयागराज में छूठ पूजा की धूम नजर आयी आस्था और विश्वास के इस महापर्व पर परवातिनों (व्रती) ने पवित्र गंगा नदी में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य दिया। गंगा किनारे बड़ी संख्या में परवातिन शाम को हाथ में बांस के बने सूप और उसमें विभिन्न प्रकार के फल और गन्ना लेकर घुटने भर जल में खड़ी होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य दिया। परवातिन सायंकाल की आराधना संपन्न कर सूर्य भगवान से अपने पुत्र के दीर्घायु के साथ पति और परिजनों की सुख-समृद्धि की कामना किया। सोमवार को प्रात: उदयाचल सूर्य को अर्ध्य देकर परवातिन व्रत का समापन करेंगी। सूर्योपासना का महापर्व छठ का चार दिवसीय पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की (शुक्रवार) चतुर्थी को नहाय खाय के साथ शुरू हुआ है। पंचमी को खरना, षष्ठी को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य दिया गया और और सप्तमी (सोमवार) को उदय हो रहे सूर्य को अर्ध्य देकर व्रत का समापन करेंगे।
भदोही जिले व ग्रामीण क्षेत्रों मे सूर्य उपासना के चार दिवसीय महापर्व डाला छठ के तीसरे दिन रविवार को व्रती महिलाओ ने अस्ताचल गामी सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित कर विधि विधान पूर्वक पूजन किया। गंगा घाट जाने वाले हर मार्गो पर आस्था की भीड़ नजर आई । सुरक्षा के दृष्टिकोण से गंगा के साथ घाट पर प्रशासनिक व पुलिस के अधिकारी पुलिस बल के साथ मौजूद रहे । गांव मे तालाब, सरोवर के साथ गंगा घाट पर वेदी बनाने के साथ ही अर्घ्य देने के लिए व्रती महिलाए परिजनो के साथ पूजन सामग्री लेकर गंगा घाट पर पहुचने लगी थी। सूर्य देव के अस्ताचल गामी होते ही अर्घ देने के साथ आराधना का क्रम शुरु हो गया।
जौनपुर जिले में पुत्र प्राप्ति, समृद्धि एवं मंगलकामना के पर्व छठ पर रविवार की शाम आदि गंगा गोमती के प्रतिमा विसर्जन घाट, हनुमान घाट सहित विभिन्न घाटों पर डूबते सूर्य देव को अर्घ्य दिया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब व जलाशयों में भी सूर्य देव को अर्घ्य दिया गया।दोपहर से ही छठव्रतियों एवं दर्शनार्थियों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था। बड़ी संख्या में छठव्रती अपने पूरे परिवार एवं गाजे-बाजे के साथघाटों पर पहुंच कर शाम को पूरे विधि-विधान से सूर्य देव की आराधना की गई।
गौरतलब है कि प्रसाद की वस्तुओं से भरे बांस से बने सूप और टोकरियों को घाट पर ले जाया जाता है जहां सूर्य देव और छठी मैय्या को संध्या अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन भक्त न कुछ खाते हैं और न ही जल पीते हैं। निर्जला व्रत छठ के चौथे या अंतिम दिन के सूर्याेदय तक जारी रहता है जब सूर्य भगवान और छठी मैय्या को उषा अर्घ्य दिया जाता है। छठ के अंतिम दिन अर्घ्य के बाद, बांस की टोकरियों से प्रसाद पहले व्रतियों द्वारा खाया जाता है और फिर परिवार के सभी सदस्यों और व्रतियों के साथ वितरित किया जाता है। छठ पूजा के चार दिवसीय त्योहार के तीसरे दिन, डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और इसे संध्या अर्घ्य या पहला अर्घ्य के रूप में जाना जाता है। छठ प्रसाद को तैयार करने के लिए एक खास तैयारी की जाती है, जो त्योहार के तीसरे दिन से शुरू होने वाले त्योहार में बहुत महत्व रखता है। व्रती और उनके परिवार के सदस्य दिन में जल्दी स्नान करते हैं और प्रसाद रखने के लिए बांस के नए सूप और टोकरियां खरीदते हैं। चावल, गन्ना, ठेकुआ,पकवान, ताजे फल, सूखे मेवे, पेड़ा, मिठाई, गेहूं, गुड़, मेवा, नारियल, घी, मखाना, नींबू, सेब, संतरा, इलायची, हरी अदरक और सूप में तरह-तरह के सात्विक खाद्य पदार्थ रखे जाते हैं। जनसैलाब को देखकर यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता था कि अब अपने शहर में छठ मनाना ज्यादा पसंद करने लगे हैं। 20 नवम्बर सोमवार को तड़के भी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। उगते हुए सूरज को अर्घ्य देने छठव्रती तड़के ही घाट पहुंचने लगेंगे। इसके बाद सोमवार को फिर घाटों में लोगों की भीड़ लगेगी। इस दौरान उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद 36 घंटे का कठिन व्रत टूटेगा।