लखनऊ, बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने स्पष्ट किया है कि बसपा एक राजनीतिक पार्टी के साथ-साथ एक सामाजिक मूवमेन्ट भी है। इसलिए इन चुनावों को केवल हार-जीत, चुनावी स्वार्थ या सामयिक लाभ के लिये लड़ने के बजाय, बसपा अपनी मूवमेन्ट को आगे बढ़ाने के मिशनरी लक्ष्य को ध्यान में रखकर ही चुनाव लड़ती है। यही कारण है कि जिन राज्यों में पार्टी का संगठन मजबूत नहीं है और जहां जनाधार भी ज्यादा नहीं बढ़ा है, वहां भी बसपा अकेले ही अपने बलबूते पर चुनाव लड़कर आत्म-विश्वास पैदा करके आगे बढ़ने का प्रयास करती है। यही कारण है कि पश्चिम बंगाल, केरल व तमिलनाडु आदि राज्यों में बसपा बिना किसी पार्टी के साथ समझौता किये हुये, अकेले अपने बलबूते पर चुनाव लड़ रही है।
मायावती ने फिर स्पष्ट किया है कि बहुजन समाज पार्टी आने वाले किसी भी राज्य के विधानसभा आमचुनाव में किसी भी पार्टी के साथ किसी भी प्रकार का कोई चुनावी गठबन्धन या समझौता आदि नहीं करेगी। पार्टी उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखण्ड व पंजाब राज्य में होने वाले अगले विधानसभा आमचुनाव में . अकेले ही अपने बलबूते पर पूरी तैयारी के साथ यह चुनाव लड़कर सत्ता की मास्टर चाबी खुद अपने हाथों में लेने का प्रयास करेगी। उन्होंने कहा कि चुनाव, चाहे लोकसभा का हो या राज्यो में विधानसभा का, बसपा के लिये यह मामला पार्टी के सिद्धान्त व विचारधारा से जुड़ा हुआ है।
सुश्री मायावती ने कहा कि साम्प्रदायिक ताकतों को कमजोर करने के मुख्य उद्देश्य के तहत् ही बसपा ने उत्तराखण्ड राज्य विधानसभा में शक्ति परीक्षण के दौरान कांग्रेस पार्टी का समर्थन किया है और यह चर्चा सरासर गलत व निराधार है कि बसपा आने वाले विधानसभा आमचुनाव में वहां कोई चुनावी गठबंधन व समझौता आदि कर सकती है। उन्होनें कहा कि जिन राज्यों में हमारी पार्टी का संगठन मजबूत नहीं है वहां भी बसपा अकेले ही चुनाव लड़ती रही है तो फिर उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड व पंजाब में तो हमारी पार्टी काफी मजबूत है व जनाधार भी काफी ज्यादा बढ़ा है। इसलिये इन राज्यों में तो किसी भी पार्टी के साथ किसी भी प्रकार का कोई चुनावी गठबंधन या चुनावी समझौता आदि करने का सवाल ही पैदा नहीं होता है।
वास्तव में लोकसभा या विधानसभा आमचुनाव लड़ना एक अलग मामला है और इन चुनावों के बाद साम्प्रदायिक ताकतों को कमजोर करने हेतु किसी गैर-साम्प्रदायिक पार्टी को सरकार बनाने के लिये समर्थन देना, अलग मामला है। बसपा राजनीतिक पार्टी के साथ-साथ सामाजिक मूवमेन्ट भी है, जिसका उद्देश्य यहां व्याप्त गैर-बराबरी वाली जातिवादी सामाजिक व्यवस्था को बदलकर समतामूलक समाज व्यवस्था स्थापित करना है। बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर ने यहां की जातिवादी व्यवस्था के शिकार लोगों को अपने पैरों पर खड़ा होकर आत्मसम्मान व स्वाभिमान का जीवन व्यतीत करने के लिये अनेको संवैधानिक व कानूनी अधिकार दिये और कहा कि इनका सही लाभ प्राप्त करने के लिये इस व्यवस्था के पीड़ित लोगों को सत्ता की मास्टर चाबी अपने हाथ में लेकर अपना उद्धार स्वयं करना होगा। इसी ही सोच को ध्यान में रखकर दिनांक 14 अप्रैल सन् 1984 को बसपा की स्थापना एक राजनीतिक पार्टी के रूप में की गई और तब से हमारी पार्टी अकेले ही चुनाव लड़ती चली आयी है। अपवाद स्वरूप कभी एक-दो राज्यों में चुनावी गठबंधन करने से बसपा का फायदा कम और नुकसान ज्यादा हुआ है। बसपा का वोट दूसरी पार्टी को तो चला गया, परन्तु दूसरी पार्टी के लोगों ने अपनी जातिवादी मानसिकता के कारण बसपा को अपना वोट नहीं दिया अर्थात ट्रान्सफर (हस्तांतरित) नहीं किया। इस कारण बसपा को गठबंधन से नुकसान उठाना पड़ा है।