नयी दिल्ली, संगीत नाटक अकादमी ने भारतीय नृत्य पर बुधवार को राष्ट्रीय राजधानी में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय महाेत्सव आयोजित किया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महोत्सव के लिए एक विशेष संदेश साझा किया और भारतीय संस्कृति में नृत्य के महत्व रेखांकित करते हुए कहा यह युवा पीढ़ी को राष्ट्र की परंपराओं से जोड़ने में अहम भूमिका निभाता है।
संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने आज राजधानी में छह दिवसीय महोत्सव का उद्घाटन किया। यह मंत्रालय का भारतीय नृत्य पर पहला अंतरराष्ट्रीय महोत्सव है, जिसका उद्देश्य भारतीय नृत्य शैलियों की विविधता और समृद्धि का जश्न मनाया तथा उनका अन्वेषण करना है। उन्होंने कहा कि महोत्सव का उद्देश्य कला में स्थायी करियर पर चर्चा को बढ़ावा देना और भारतीय नृत्य के लिए संस्थागत समर्थन को प्रोत्साहित करना है, जिससे सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का मंच बने।
प्रधानमंत्री मोदी ने संगीत नाटक अकादमी एवं संस्कृति मंत्रालय का आभार व्यक्त करते हुए कहा, “यह हमारे लिए एक ऐतिहासिक क्षण और एक यादगार अवसर है। विभिन्न देशों के कलाकारों की भागीदारी सांस्कृतिक विनिमय में मदद करती है। संगीत और नृत्य ऐसी भाषाएं हैं जो सीमाओं को पार करती हैं और जिन्हें सभी जगह समझा जाता है। प्रदर्शन कलाओं के लिए सबसे प्राचीन ग्रंथ भारत में भरत मुनि द्वारा लिखे गए थे। इस विरासत को आगे बढ़ाना गर्व और जिम्मेदारी दोनों है।” प्रधानमंत्री ने कहा कि इस तरह के महोत्सवों में युवा पीढ़ी को संलग्न करने से उन्हें अपनी जड़ों से जुड़े रहने में मदद मिलती है और यह राष्ट्र निर्माण में उनके योगदान को मजबूत करता है।
श्री शेखावत ने कहा, “यह महोत्सव भारतीय नृत्य की भव्य परंपरा का जश्न मनाता है, जिसमें दुनिया भर के कलाकारों, विद्वानों और प्रथागत कलाकरों को एक साथ लाया जाता है। जैसे लगातार बहने वाली गंगा, ये परंपराएं पीढ़ियों की समर्पण के माध्यम से फलती-फूलती हैं, हमें विविधता के बीच गहरी एकता से जोड़ती हैं। आज की उथल-पुथल भरी दुनिया में, जहां भू-राजनीतिक अस्थिरता और नैतिक पतन सामान्य हैं, भारत अपनी प्राचीन बुद्धि, कला और मूल्यों के माध्यम से एक सांस्कृतिक दिशा प्रदान करता है। जब से हमारे प्रथाओं की वैश्विक स्वीकृति बढ़ रही है, योग से लेकर आयुर्वेद तक। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस विरासत को आगे बढ़ाएं। यह महोत्सव विचारों के आदान-प्रदान का एक मंच है, जैसे समुद्र का मंथन, जिसने अमृत का उत्पादन किया, भारत और दुनिया को प्रेरणा और दिशा देने के लिए।”
इस अवसर पर संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव उमा नंदुरी, डॉ पद्मा सुब्रह्मण्यम पद्म विभूषण, डॉ सोनल मानसिंह पद्म विभूषण पद्म भूषण, संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष डॉ संध्या पुरेचा सहित विश्व भर के कलाकार और गणमान्य उपस्थित रहे।
डॉ. मानसिंह ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा, “जब लोग वैज्ञानिक प्रगति, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अधिक के बारे में बात कर रहे हैं, मुझे डर है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता शायद एक दिन ऐसा परिदृश्य पैदा कर देगी, जहां सोनल मानसिंह एआई की मदद से नृत्य करेंगी। हमें सभी चीजों को उचितता, संतुलन और रचनात्मकता की समझ के साथ जमा करते हुए आगे बढ़ना होगा।”
डॉ. पुरेचा ने कहा, “यह ऐतिहासिक कार्य, जिसे दक्षिण-पूर्व और आर्कटिक अकादमी और संस्कृति मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है, विविध चर्चाओं, विद्वतीय प्रस्तुतियों और परंपरा और नवाचार, संस्कृति और पहचान के बीच के प्रतिच्छेदन पर प्रदर्शन शुरू करने का प्रयास करता है। जहाँ कृष्ण, योग के स्वामी, और अर्जुन, धनुर्धारी हैं, वहाँ सफलता, विजय, समृद्धि और अच्छी नैतिकता भी होती है। इसका तात्पर्य यह है कि ज्ञान और सफलता सहयोग और साझा उद्देश्य से उत्पन्न होती है। इस तरह का ऐतिहासिक कार्यक्रम, जहाँ कलाकारों, विद्वानों, अकादमिकों, निर्माताओं और कला के समर्थकों का एक साथ आना, दुर्लभ है। मुझे लगता है कि अब सवाल उठाने, बातचीत करने और एकत्र होने का समय है, जबकि हम अपने भविष्य की ओर देख रहे हैं।
संगीत नाटक अकादमी की ओर से आयोजित भारतीय नृत्य पर अंतरराष्ट्रीय महोत्सव, दुनिया भर के कलाकारों, विद्वानों, नृत्य समीक्षकों और प्रदर्शनकारियों को एक साथ लाने का प्रयास कर रहा है। इसमें भारतीय नृत्य के ऐतिहासिक और समकालीन विकास, नृत्य शिक्षा, अनुसंधान विधियों तथा कला पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रभाव जैसे विभिन्न विषयों की खोज करने वाले तीस सेमिनार शामिल होंगे।
कमानी ऑडिटोरियम में प्रतिदिन शाम को प्रतिष्ठित कलाकारों, जैसे डॉ. सोनल मांनसिंह और राम्ली इब्राहीम, के सांस्कृतिक प्रदर्शनों के साथ-साथ भारत और विदेशों से एकल तथा समूह कार्यशाला पेश किए जाएंगे।
गौरतलब है कि संगीत नाटक अकादमी देश की राष्ट्रीय संगीत, नृत्य और नाटक की अकादमी पहली राष्ट्रीय अकादमी है। इसे 31 मई 1952 को (तब के) भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के एक प्रस्ताव द्वारा स्थापति किया गया था। अकादमी ने अगले वर्ष अपने पहले अध्यक्ष डॉ पी वी राजामन्नार की नियुक्ति के साथ कार्यशीलता प्राप्त की और इसकी अखिल भारतीय प्रतिनिधियों की परिषद, सामान्य परिषद का गठन किया गया। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 28 जनवरी, 1953 को संसद भवन में आयोजित एक विशेष समारोह में इसका उद्घाटन किया।