अहमदाबाद, अमेरिका, रूस, चीन, जापान, यूरोपीय संघए कोरिया और भारत समेत 35 देशों के सहयोग से भविष्य में संलयन यानी फ्यूजन प्रक्रियाए जिसके जरिये सूर्य और तारे ऊर्जा पैदा करते हैंए से कृत्रिम ढंग से बिजली बनाने की संभावना तलाशने के लिए फ्रांस में स्थापित किये जा रहे इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रियेक्टर के महानिदेशक और जाने माने नाभिकीय ऊर्जा वैज्ञानिक डा़ बर्नाड बिगो ने आज कहा कि इस प्रक्रिया के जरिये धरती पर उपलब्ध पानी और लिथियम के भंडार के जरिये ही एक अरब लोगों की 10 करोड़ साल तक की ऊर्जा जरूरतें पूरी की जा सकती हैं।
यहां निरमा विश्वविद्यालय के 26 वें दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि के तौर पर आये बिगो ने पत्रकारों से कहा कि फ्यूजन प्रक्रिया से पैदा होने वाली विपुल ऊर्जा का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि मात्र 50 लीटर पानी और दो ग्राम लिथियम एक व्यक्ति के पूरे जीवनकाल की ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। धरती पर इन दोनो चीजो का प्रचुर भंडार है और इसके जरिये एक अरब लोगों की ऊर्जा जरूरतों को 10 करोड़ साल तक पूरा किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि पहले जब मानव केवल नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों यानी रिन्यूएबल इनर्जी पर ही आश्रित था तो उसे अपनी जरूरतों के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी और उसका जीवन काल बहुत कम औसतन 35 साल होता था। इसके बाद सौर ऊर्जा के ही एक रूप जीवाश्व यानी फासिल आधारित ईंधन का इस्तेमाल शुरू हुआ है और इसके जरिये जीवन काल बढ़ा है और हर आदमी इतनी ऊर्जा खर्च करता है जो कि हर रोज 450 लोगों के उसके लिए श्रम करने के बराबर है। इस तरह का ऊर्जा खर्च न केवल पर्यावरण को बर्बाद कर रहा है बल्कि लंबे समय तक चलने वाला भी नहीं। इसलिए एक साफ सुथरे और टिकाऊ ऊर्जा विकल्प की जरूरत है। अगर फ्यूजन संबंधी प्रयोग सफल होते हैं तो यह ऊर्जा ऐसा विकल्प हो सकती है और मानवता के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हो सकती है।
उन्होंने कहा कि 2007 में शुरू हुए आईटीईआर का निर्माण 25 साल में पूरा करने का लक्ष्य है। अब तक इसके लिए जरूरी मुख्य उपकरण का 60 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। वर्ष 2025 तक पहला प्लाज्मा कहे जाना वाला महत्वपूर्ण चरण पूरा होगा और पूरी फ्यूजन प्रक्रिया 2035 तक शुरू होगी। पर इसके लिए चुनौती को इस तरह समझा जा सकता है कि इस प्रयोग के लिए दो ग्राम हाइड्रोजन को लगभग 1000 घन मीटर आयतन के एक विशेष बर्तन में 15 करोड़ डिग्री तक गर्म करना होगा।
यह तापमान सूर्य के अंदरूनी भाग के तापमान का भी दस गुना है। इस ताप पर हाइड्राेजन का नाभिक जुड़ कर हीलियम और न्यूट्रान तथा बहुत बड़े पैमाने पर ऊर्जा छोड़ेंगे। यह ऊर्जा उस ऊर्जा से बहुत ज्यादा होगी जो फ्यूजन की इस प्रक्रिया को करने के लिए लगी होगी। यह ऊर्जा मुख्य रूप से ताप के रूप में होगी जिसे विद्युत में बदलना होगा। उन्होंने कहा कि इसके अलावा चुनौती यह भी होगी कि यह प्रयोग केवल प्रयोगशाला के स्तर तक सीमित न हो और आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्धी हो और औद्योगिक तौर पर कर सकने योग्य हो। उन्होंने कहा कि यह सब एक सपना है और यह सपना सच होना जरूरी है।