नयी दिल्ली, नए नियम-कानून के तहत अब सौतेले माता-पिता अपने बच्चों को राष्ट्रीय दत्तक संस्था के जरिए गोद ले सकते हैं और उनके साथ अपने संबंध को कानूनी रूप दे सकते हैं। नए नियम 16 जनवरी से प्रभावी हो जाएंगे और इनके तहत रिश्तेदार भी बच्चों को गोद ले सकेंगे।
केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (कारा) के सीईओ लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार ने कहा, भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो सौतेले माता या पिता और सौतेले बच्चे के बीच वैधानिक संबंध की व्याख्या करता हो। सौतेले बच्चे का सौतेले माता या पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता। बच्चा भी अपने सौतेले माता या पिता की उनकी वृद्धावस्था में देखभाल करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं होता। इन्हीं खामियों को हम दूर करना चाहते हैं।
कारा केंद्र सरकार के अधीन एक संस्था है जो देश में सभी दत्तक प्रक्रियाओं की निगरानी और नियमन करती है। पहले केवल अनाथ, छोड़ दिए गए या संरक्षण छोड़े गए बच्चे को ही गोद लिया जा सकता था। लेकिन अब सरकार ने गोद दिए जा सकने वाले बच्चों की परिभाषा को और व्यापक करते हुए इसमें किसी संबंधी का बच्चा, पूर्व विवाह से पैदा हुआ बच्चा या जैविक माता-पिता द्वारा जिस बच्चे का संरक्षण छोड़ दिया गया हो उन्हें भी शामिल कर दिया है जिसके चलते ऐसे बच्चों को भी अब गोद लिया जा सकता है। सौतेले माता या पिता के मामले में दंपत्ति, जिसमें से एक बच्चे का जैविक जनक हो उसे बाल दत्तक संसाधन सूचना एवं मार्गदर्शन प्रणाली में पंजीयन करवाना होगा। लेकिन गोद लेने के लिए दूसरे जैविक जनक की मंजूरी की जरूरत होगी और दत्तक आदेश प्राप्त करने के लिए अदालत में आवेदन देना होगा।
इसी तरह, किसी संबंधी द्वारा गोद लेने के मामले में संभावित माता-पिता को बच्चे के जैविक माता-पिता से मंजूरी लेनी होगी। यदि जैविक माता-पिता जीवित नहीं हैं तो बाल कल्याण समिति से इजाजत लेनी होगी। ये नियम किशोर न्याय अधिनियम 2015 से लिए गए हैं जिसमें रिश्तेदार या संबंधी शब्द की व्याख्या चाचा या बुआ, मामा या मासी, दादा-दादी या नाना-नानी के रूप में की गई है। इन दो श्रेणियों में दत्तक प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए गोद लेने वाले संभावित माता-पिता के लिए आयुसीमा भी खत्म कर दी गई है। हिंदू कानून में दत्तक ग्रहण, हिंदू दत्तक ग्रहण एवं देखभाल अधिनियम, 1956 के तहत आता है जिसमें कई तरह की बंदिशें हैं। इस कानून के तहत, गोद लेने वाला परिवार उस लिंग के बच्चे को गोद नहीं ले सकता जिस लिंग का उनका अपना बच्चा, पोता या पड़पोता है। विपरित लिंगी बच्चे को गोद लेने वाले संभावित माता-पिता की आयु बच्चे की उम्र से 21 साल अधिक होनी चाहिए। पारिवारिक कानून विशेषज्ञ अनिल मल्होत्रा ने बताया कि अधिनियम में दत्तक ग्रहण प्रक्रिया पर अदालती मुहर लगने की कोई व्यवस्था नहीं है। लेकिन जब कोई व्यक्ति बच्चे को विदेश ले जाना चाहता है तो दूतावास अदालती आदेश पर जोर देता है। मुस्लिम, इसाई और पारसी समुदाय के लिए कोई दत्तक कानून नहीं है। इन समुदायों के गोद लेने के इच्छुक लोगों को गार्जियन ऐंड वार्ड्स एक्ट, 1890 के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाना होता है। इस कानून के तहत बच्चे को केवल लालन पालन के लिए लिया जा सकता है। बालिग होने पर बच्चा सभी संबंधों को खत्म करने के लिए स्वतंत्र होता है। ऐसे बच्चे को वारिस बनने का कानूनी अधिकार भी नहीं होता।