कोलकाता, अब तक पश्चिम में प्रचलित अवधारणाओं पर होने वाली वास्तुशिल्प यानि आर्किटेक्चर की पढ़ाई को बदला जा रहा है और इसमें प्राचीन भारत के वास्तुशिल्प को शामिल किया जाएगा। यह सर्वविदित है कि एक अच्छे आर्किटेक्ट को वास्तु शास्त्र की जानकारी होनी जरूरी है।
आइआइटी खड़गपुर का मानना है कि वास्तु शास्त्र की नींव पर ही भारतीय आर्किटेक्चर आधारित है।देश का सबसे पुराना और सबसे बड़ा आइआइटी कॉलेज इस अगस्त माह से फर्स्ट और सेकेंड इयर के अंडर ग्रेजुएट आर्किटेक्चर छात्रों के लिए वास्तुशास्त्र की मौलिक जानकारी उपलब्ध कराएगा और जो पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे हैं या फिर रिसर्च स्कॉलर को इस विषय का गहराई से अध्ययन कराया जाएगा। कंसेप्ट के तौर पर वास्तु शास्त्र को आर्किटेक्चर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर के सिलेबस में नहीं रखा गया था।
हालांकि फैकल्टी का मानना है कि अब तक पश्चिम में प्रचलित कंसेप्ट के आधार पर छात्रों को पढ़ाया जाता है, लेकिन उन्हें प्राचीन भारत के आर्किटेक्चर संबंधित परंपराओं से दूर रखा जाता है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। उनका मानना है कि वास्तु अध्ययन का धर्म से कोई जुड़ाव नहीं है बल्कि यह प्राचीन भारतीय कंसेप्ट विज्ञान पर आधारित है। आइआइटी खड़गपुर के रणबीर एंड चित्रा गुप्ता स्कूल ऑफ इंफ्रास्ट्रक्चर डिजायन एंड मैनेजमेंट ने वास्तु इन ग्लोबल पर्सपेक्टिव विषय पर पहली वर्कशॉप आयोजित की, जिसने देश के वास्तु विशेषज्ञों को आकर्षित किया। आर्किटेक्चर विभाग के फैकल्टी ज्वॉय सेन ने बताया, समय बदल रहा है और प्राचीन भारतीय ज्ञान में लोगों की रुचि बढ़ गयी है। इसलिए यह स्वभाविक है कि हम अपने कोर्स में वास्तु को शामिल करें। पढ़ाए गए वास्तु के आधार पर छात्रों को असाइनमेंट, प्रोजेक्ट और टेस्ट देने होंगे। सेन ने आगे बताया, वास्तुशास्त्र की शुरुआत ऋगवेद से हुई। आज दुनिया में हरियाली को महत्व दिया जा रहा है। वास्तु का कंसेप्ट प्रकृति के साथ स्वस्थ संबंध के इर्द-गिर्द घूमता है और इसलिए आज के समय में यह महत्वपूर्ण है।