आणंद, केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने रविवार को कहा कि आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न तभी पूरा हो सकता है जब आत्मनिर्भर गांवों की संख्या बढ़ेगी। गांव को आत्मनिर्भर बनाना है तो ये ग्रामीण विकास के बिना संभव ही नहीं है।
अमित शाह ने रविवार को इंस्टीट्यूट ऑफ़ रूरल मैनेजमेंट आणंद (आईआरएमए) के 41वें वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत की कल्पना हमारे सामने रखी है और आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न तभी पूरा हो सकता है जब आत्मनिर्भर गांवों की संख्या बढ़ेगी। गांव को आत्मनिर्भर बनाना है तो ये ग्रामीण विकास के बिना संभव ही नहीं है।
उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय विकास के लिए भी देश के 100 ऐसे ज़िलों की पहचान की जो विकास की दौड़ में पिछड़े हुए थे। उनके पैरामीटर्स बनाए जैसे कि सबसे ज्यादा निरक्षर लोग कहाँ हैं, ड्रॉपआउट रेशो सबसे ज्यादा कहां है, कहां कुपोषण की समस्या है, कहां रहने के घर लोगों को कम मिले हैं। ऐसे पैरामीटर्स के आधार पर आकांक्षी जिलों की सूची बनाई और भारत सरकार और राज्य सरकार ने उन जिलों पर फ़ोकस करना शुरू किया। मैं आपको आनंद के साथ बताना चाहता हूं कि ढाई साल के मोदी जी के परिश्रम के कारण आकांक्षी जिलों में से कई जिले आज विकसित जिलों में शामिल हो चुके हैं और विकास की दौड़ में अपने आप को आगे पा रहे हैं। पहले विकास शहरों के आस पास होता था और समुद्र के किनारे, पहाड़ पर बसे, जंगल के अंदर वाले ट्राईबल जिलों के विकास की कोई सोचता नहीं था। आज नरेंद्र मोदी जी ने सभी जिलों के विकास के लिए एक समान अवसर उनको उपलब्ध कराए हैं और प्राथमिकता क्षेत्र में भी डालने का काम किया और आज वह जिले विकसित होकर आगे बढ़ रहे हैं।
केंद्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि एक डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड की रचना की गई जिससे खदान वाले जिले के विकास के लिए बहुत बड़ी राशि मिलती है। कैंपा फंड की योजना शुरू की जिससे जिलों को हरित बनाएंगे। ग्रामीण विकास की संपूर्ण कल्पना- व्यक्ति, गांव और क्षेत्र का विकास – को नरेंद्र मोदी सरकार ने जमीन पर उतारने का काम किया है। आज भी 70 प्रतिशत भारत गांवों में बसता है और आज भी ऐसे लोग गांव में ही बसते हैं जिनको विकास की सबसे ज्यादा जरूरत है। जिन भाइयों बहनों को विकास का मौका नहीं मिला है उनके जीवन के अंधेरों को खत्म कर उजाले की ओर ले जाना हमारा दायित्व है।
ग्रामीण विकास के बगैर गांव देश के अर्थतंत्र में कंट्रीब्यूटर नहीं बन सकता और जब तक ये नहीं होता तब तक देश का 70 प्रतिशत टैलेंट देश के अर्थतंत्र के विकास से महरूम रह जाता है। देश के 30 प्रतिशत लोग देश के अर्थतंत्र को गति नहीं दे सकते हैं क्योंकि बाक़ी 70 प्रतिशत का बोझ ही उस गति को रोक लेगा। इसीलिए अगर 70 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को हमने देश के अर्थतंत्र को गति देने के काम से जोड़ दिया तो पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का नरेन्द्र मोदी जी के सपने को पांच साल में ही पूरा होते हुए देखेंगे। लेकिन इसके लिए जरूरत है ग्रामीण विकास को नीचे तक पहुंचाने की। मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत की कल्पना हमारे सामने रखी है और आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न तभी पूरा हो सकता है जब आत्मनिर्भर गांवों की संख्या बढ़ेगी। गांव को आत्मनिर्भर बनाना है तो ये ग्रामीण विकास के बिना संभव ही नहीं है।
केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि सहकारी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए भी इरमा (आईआरएमए ) को और अधिक योगदान देने की ज़रूरत है क्योंकि सहकारिता समावेशी है। सहकारिता को और समावेशी, पारदर्शी, आधुनिक और टेक्नोलॉजीयुक्त बनाना है और सहकारिता के माध्यम से व्यक्ति और गांव को आत्मनिर्भर भी बनाना है। ये सब तभी हो सकता है जब इरमा (आईआरएमए) जैसे संस्थान अपना योगदान बढ़ाएंगे। उन्होंने कहा कि शिक्षा एक ऐसी खूबसूरत चीज है जिसको आप से कोई छीन नहीं सकता लेकिन अगर शिक्षा के उद्देश्य से हम भटक गए तो आप अपनी ही शिक्षा को खुद से छीन लोगे। इसके उद्देश्य के प्रति हम मजबूत बने रहेंगे तो अपना विकास तो करना ही करना है परंतु इसके बाद जो समय बचता है वह औरों के विकास के लिए लगाएं। इसके बाद जो समय बचता है वह देश के विकास के लिए लगाएंगे तो मुझे लगता है कि शिक्षा की खूबसूरती और बढ़ जाएगी।
सहकारिता मंत्री ने इस अवसर पर कहा कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी ने कहा था कि हर व्यक्ति की एक उपयोगिता है कि इस देश का सबसे अच्छा दिमाग आपको क्लास की लास्ट बेंच पर ही मिल सकता है। इसीलिए किसी को भी इनफीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स पालने की जरूरत नहीं है क्योंकि कोई भी व्यक्ति जन्म से बड़ा नहीं होता बल्कि सोच बड़ी होती है।