नयी दिल्ली, कुछ दशक पहले तक उत्तर प्रदेश का मलिहाबाद अपने आमों के कलमी (ग्राफ्ट) पौधों का गढ़ माना जाता था लेकिन इसकी कीमत में तीन गुणा वृद्धि के कारण पश्चिम बंगाल के कम गुणवत्ता वाले पौधे मलिहाबाद के नाम पर बेचे जा रहे हैं।
मलिहाबाद की नर्सरियों में अब आम के बजाय सजावटी पौधों, अमरूद और कीमती लकड़ियों के पौधे तैयार करने पर ध्यान केन्द्रीत कर दिया गया है। देश ही नहीं विदेशों (नेपाल और भूटान) को घरेलू और विदेश व्यापार के लिए उपयुक्त स्वादिष्ट दशहरी आम का कलमी पौधा उपलब्ध कराने वाले मलिहाबाद में पौधों की तैयारी में कमी आने से इसकी मनमानी कीमत वसूल कर रहे हैं। कुछ नर्सरी एक पौधे की कीमत 250 रुपये वसूल कर रही हैं जबकि तीन साल पहले तक 40 से 50 रुपये में यह आसानी से उपलब्ध हाेता था। कुछ दशहरी के पौधे 70 से 80 रुपये में भी बेचे जा रहे हैं।
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ ने मलिहाबाद में इस बदलते रोचक परिदृश्य को लेकर हाल में एक अध्ययन कराया है और पाया है कि सीमित लागत में दूसरे किस्मों के अधिक पौधे तैयार कर लेते हैं तथा पश्चिम बंगाल में तैयार कलमी पौधे भी बाजार में उपलब्ध हैं। मलिहाबाद में प्रतिदिन देश के विभिन्न हिस्सों से कलमी आम के पौधे लेने के लिए बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं लेकिन वे जितनी संख्या में पौधे चाहते हैं वह उपलब्ध नहीं है।
संस्थान के निदेशक शैलेन्द्र राजन ने कहा कि मलिहाबाद की नर्सरियों को दशहरी के अलावा लंगड़ा , चौसा और सफेदा आम के कलमी पौधों के लिए जाना जाता है। धीरे-धीरे कलमी आम के पौधों की लागत में वृद्धि होने और सस्ती दर पर पौधों के बेचने से नर्सरी के अस्तित्व में बने रहना खतरे में पड़ता जा रहा था। पिछले पांच साल के दौरान अमरूद के कलमी पौधों की मांग में कई गुणा की वृद्धि हुयी है। इसके साथ ही संस्थान ने इसके ग्राफ्ट की जो तकनीक विकसित की है उससे इसके पौधे कम लागत में तैयार होते हैं। इसके कारण नर्सरियों में अमरूद के लाखों पौधे तैयार हैं ।
पश्चिम बंगाल काफी कम कीमत में कलमी आम के पौधे उपलब्ध कराता है । मलिहाबाद की नर्सरियों को बड़ी संख्या में पश्चिम बंगाल के कलमी आमों की आपूर्ति की जा रही है । पूर्वी राज्यों में कम लागत के व्यापार के कारण इसके गुणवत्ता की गारंटी नहीं दी जा सकती है । बिचौलिये पश्चिम बंगाल से आम के पौधों की आपूर्ति करा रहे हैं । पश्चिम बंगाल के पास उत्तर भारत की दशहरी या अन्य आम की प्रमुख किस्मों का मदर प्लांट नहीं है । यदि यह व्यवस्था बनी रहती है तो आम्रपाली किस्म के पौधे भी कम कीमत पर मिल सकते हैं पर अन्य किस्मों के लिए भारी कीमत चुकानी होगी ।
मलिहाबाद में दशकों से आम के कलमी पौधे तैयार कर बेचने का व्यापार चल रहा था और नर्सरीकर्मी इसके मिलने वाले मूल्य से संतुष्ट थे लेकिन अब देश के अन्य हिस्सों की तुलना में यहां के पौधे तीन गुणा महंगे हो गये हैं। इससे अन्य स्थानों में भी कलमी पौधे के मूल्य प्रभावित हो रहे हैं।
डाॅ राजन ने कहा कि संस्थान अपने यहां विकसित आम के नये किस्मों के कलमी पौधे तैयार कराता है जो सामान्य नर्सरियों में मुश्किल से उपलब्ध होता है। ज्यादातर अम्बिका , अरुणिका , मल्लिका और आम्रपाली के कलमी पौधों को तैयार करने को प्रथमिका दी जा रही है। संस्थान का मानना है कि आम की जिन किस्मों की मांग है वे नर्सरियों में उपलब्ध ही नहीं हैं। इस परिस्थिति को देखते हुए संस्थान ने अनुसूचित जाति के चार कारोबारियों के साथ सहयोग शुरू किया है ताकि बड़ी संख्या में कलमी पौधों को संस्थान के अंदर ही उपलब्ध कराया जा सके।