नई दिल्ली, आरएसएस ने कहा है कि उसके नेता भैयाजी जोशी ने राष्ट्रीय ध्वज या राष्ट्रगान में कोई बदलाव करने की बात नहीं कही थी जब उन्होंने वंदे मातरम को भारत की सांस्कृतिक पहचान और भगवा ध्वज को भारत की प्राचीन संस्कृति का प्रतीक बताया था। संघ ने कहा कि वह सिर्फ राज्य शक्ति और राष्ट्र के बीच अंतर के बारे में चर्चा कर रहे थे।
आरएसएस प्रवक्ता मनमोहन वैद्य ने कहा, भैयाजी जोशी (आरएसएस के सरकार्यवाह) राज्य शक्ति और राष्ट्र के बीच अंतर पर चर्चा कर रहे थे। कहीं भी भैयाजी ने राष्ट्रीय ध्वज या राष्ट्रगान में बदलाव की बात नहीं कही। वैद्य के अनुसार जोशी ने कहा, 1947 में संविधान सभा ने तिरंगा को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया था और उसे भारतीय गणराज्य ने बरकरार रखा। भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए यह अनिवार्य है कि वह उस प्रतीक का सम्मान करें। उन्होंने कहा कि जोशी ने कहा था कि भगवा ध्वज को भारत के लोगों ने हमारी प्राचीन संस्कृति के प्रतीक के तौर पर न जाने कब से पूज्य माना है। हम तिरंगा, जो हमारा राष्ट्रीय ध्वज है और भगवा झंडा जो हमारी प्राचीन संस्कृति का प्रतीक है दोनों को पूज्य मानते हैं।
जोशी ने कहा, उसी तरह जन-गण-मन राज्य की धारणा को प्रकट करता है जबकि वंदे मातरम हमारी सांस्कृतिक पहचान को प्रकट करता है। हम सबको राष्ट्रगान और राष्ट्र गीत दोनों का समान रूप से सम्मान करना चाहिए। जोशी ने शुक्रवार को मुंबई में दीनदयाल उपाध्याय शोध संस्थान में यह बयान दिया था। उन्होंने कहा था, जन-गण-मन आज हमारा राष्ट्रगान है। इसका सम्मान किया जाना चाहिए। इस बात का कोई कारण नहीं है कि कोई और भावना पैदा होनी चाहिए। उन्होंने कहा, लेकिन यह राष्ट्र गान संविधान के अनुसार है। अगर सही अर्थ में विचार किया जाए तो वंदे मातरम राष्ट्र गान है। जोशी ने कहा था, हालांकि, वंदे मातरम में जिस भावना का इजहार किया गया वह राष्ट्र के चरित्र और शैली को अभिव्यक्त करता है। यह दोनों गीतों के बीच अंतर है। दोनों सम्मान के हकदार हैं।