डूंगरपुर, राजस्थान में डूंगरपुर एवं बासवाडा जिले की सीमा पर स्थित बेणेश्वर धाम पर 17 फरवरी से शुरू हो रहा आदिवासियों की आस्थाओं का महाकुंभ बेणेश्वर मेला बहुरंगी जनजाति संस्कृतियों के संगम का साक्षी बनेगा। सोम.माही.जाखम नदी का बेणेश्वर धाम लोक संत मावजी महाराज की तपोस्थली आयोजित मेले में राजस्थान के साथ ही पूरे देशभर एवं पडौसी राज्यों गुजरातए मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र से भी लाखों श्रद्धालु पहुंचते है। वैसे तो यह मेला ध्वजा चढ़ने के साथ ही प्रारंभ हो जाता है परंतु ग्यारस से माघ पूर्णिमा तक लगने वाले मुख्य मेले में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बहुत अधिक होती है।
तीन दिवसीय मेले में जिला प्रशासनए जनजाति क्षेत्रीय विकास एवं पर्यटन विभाग के संयुक्त तत्वाधान में विभिन्न सांस्कृतिक एवं खेलकूद कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। अपनी आदिम संस्कृति की विशिष्टताओं के लिए सुविख्यात वागड़ प्रयाग के इस जनजाति महाकुंभ में पारम्पारिक परिधानों में सजे और अलहड़ मस्ती में झूमते.गाते जनजाति वांशिदे लोक तरानों से फि़जा को लोक सांस्कृतिक उल्लास के रंगो से रंग देते हैं। बेणेश्वर धाम के मुख्य मन्दिर राधा.कृष्ण देवालय पर संत मावजी महाराज की जयन्ती माघशुक्ल ग्यारस को महन्त अच्युतानंद द्वारा सप्तरंगी ध्वज चढाने से शुरू होने वाला यह मेला दिन प्रतिदिन उभार पर रहता है। दूर.दूर तक जहां.जहां दृष्टि जाये वहीं अपार जनगंगा प्रवाहमान रहती है।
दूर.दूर से आए भक्तए साद सम्प्रदाय के भगतए साधु.संतए महंत के साथ ही पर्यटक मन्दिर परिसरों तथा संगम तटों पर यत्र.तत्र डेरा डाले धार्मिक एवं आध्यात्मिक आनन्द में गोते लगाते रहते है। आदिवासी मेवाड वागड क्षेत्र की पहचान बन चुके लोक नृत्य गैर इस मेले का प्रमुख आकर्षण बन चुका है। माघ पूर्णिमा को होने वाले मुख्य मेले के दिन होने वाली गैर प्रतियोगिताओं में रंगबिरंगे पारम्पारिक परिधानों एवं आभूषणों में सजे ष्गेरियेष् के लोक वाद्य यंत्रों कुण्डीए ढ़ोलए नगाड़ों की थापों पर थिरकते कदमों से समूचा मेला फाल्गुनी रंगों में रंग जाता है।
जनजाति संस्कृति के बहुआयामी रंगों का एक ही स्थान पर दिग्दर्शन कराने वाला यह मेला विश्व में अपने आप में एक अनूठा मेला है। अपने वैशिष्ट्य परम्पराओं व जीवन संस्कृति को निकटता से अनुभूत कराने वाला बेणेश्वर मेला आस्था व संस्कृति का अद्भूत संगम है।