नई दिल्ली,दुनिया भर के लाखों मुसलमान हज के लिए हर साल सऊदी अरब पहुंचते है. पांच दिनों तक चलने वाली यह हज यात्रा इस साल 19 अगस्त से शुरू हुई थी. मुसलमानों का कलमा है, ला इलाहा इल्ला ला मुहम्मद उर रसूल अल्लाह. जिसका मतलब है, नहीं है कोई खुदा सिवाए अल्लाह के और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं. इस्लाम के मानने वाले इस बात पर यकीन करते हैं. लेकिन एक ऐसा समुदाय है जो हज़रत मोहम्मद को आखरी पैगम्बर स्वीकार नहीं करते.
ये समुदाय अहमदिया समुदाय है. ये लोग नमाज़, दाढ़ी, टोपी, बातचीत व लहजे में मुसलमान प्रतीत होते हैं लेकिन इस्मालिक मूल्यों में से एक ‘पैगंबर मोहम्मद को आखिरी नबी’ नहीं मानते.अहमदिया समुदाय के लोगों का मानना है नबुअत (पैगम्बरी) की परंपरा पैगंबर मोहम्मद के बाद रुकी नहीं बल्कि लगातार जारी है. ये लोग अपने वर्तमान सर्वोच्च धर्मगुरु को भी अपने वर्तमान नबी के रूप में मानते हैं. अहमदिया तो खुद को मुसलमान मानते हैं परंतु इस समुदाय के अलावा सभी मुस्लिम वर्ग इन्हें मुसलमान नहीं मानते. अहमदिया समुदाय के लोग हनफी इस्लामिक कानून का पालन करते हैं. इसकी शुरुआत हिंदुस्तान में मिर्ज़ा गुलाम अहमद ने की थी. ये लोग मानते हैं मिर्ज़ा गुलाम अहमद एक नबी यानी खुदा के दूत थे.
अहमदिया मुस्लिमों का कहना है गुलाम अहमद ने अपनी कोई शरीयत नहीं दी बल्कि मोहम्मद साहब की ही शिक्षाओं को फैलाया, लेकिन वो खुद भी एक नबी का दर्जा रखते थे. अहमदिया मुस्लिमों की सबसे ज्यादा तादाद पाकिस्तान में है. पाक में इनकी संख्या 40 लाख से ज़्यादा बताई जाती है. भारत में करीब 10 लाख, नाइजीरिया में 25 लाख से ज्यादा, इंडोनेशिया में करीब 4 लाख है. अहमदिया संप्रदाय के लोग बाकी मुस्लिमों के निशाने पर रहते हैं. पाकिस्तान में इनपर बहुत ज़ुल्म होता है. जिस वजह से इन्होंने कई देशों में शरण ली. उन देशों में जर्मनी, तंजानिया, केन्या शामिल हैं.
हर मुस्लिम बहुल देश में अहमदियों का विरोध होता है. मुहम्मद साहब को आखिरी नबी नहीं मानने की इनकी बात पर मुसलमान इनके खिलाफ रहते हैं. इसी फर्क के चलते अहमदिया समुदाय पाकिस्तान में दूसरे दर्जे का नागरिक बना हुआ है.पाकिस्तान में रहने वाले अहमदिया अपनी इबादतगाह को मस्जिद नहीं कह सकते हैं. उनके सार्वजनिक रूप से कुरान की आयतें पढ़ने और हज करने पर भी पाबंदी है. पाकिस्तान में जैसे-जैसे चरमपंथ बढ़ा है इन लोगों पर होने वाले हमले भी बढ़े हैं.