इस बौद्ध स्थल को क्यों, मुख्यमंत्री के विशेष सचिव से जोड़ा जा रहा ?
April 5, 2017
कुशीनगर, जनपद मुख्यालय से लगभग 14 किमी दूर रामकोला विकास खंड के अंतर्गत एनएच 28-बी पर स्थित है, अति प्राचीन बौद्ध स्थल पपऊर पावा। चीनी यात्री फाह्यान एवं राहुल सांकृत्यायन की पुस्तकों में पपऊर पावा का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि कुशीनगर की धरती पर महात्मा बुद्ध का परिनिर्वाण हुआ था। उनके अनुयायियों ने आठ भागों में बांट कर लेते गए। इसमें से पीपल वन, राम ग्राम, पटना, पंपापुर तथा इसी पावा में अस्थि का एक भाग रखकर स्तूप बनाया गया था। जो प्राचीन टीले के रूप में है। बुद्ध कालीन 500 ईसा पूर्व भारत का मध्य मंडल मानचित्र पपऊर पावा का वर्णन है। इसी मानचित्र के सहारे कभी कभार विदेशी नागरिक भी आकर इस टीले की पूजा करते देखे गए। वर्तमान में टीले की जमीन खसरा संख्या 966- 566 तथा 971-779 बुद्ध स्थल के नाम से आवंटित है। इतिहास के जानकार बताते हैं कि पपऊर पावा मल्ल गणराज्य में स्थित था। जहां महात्मा बुद्ध वर्षा काल में निवास कर अनुयायियों को शांति का संदेश देते थे।
यह अति प्राचीन काल का बुद्ध विहार, वर्तमान मे झाड़ियों से पटा हुआ है। भगवान बुद्ध का स्तूप है जहां वर्तमान में प्रतिमा रखकर भंते पूजा कर रहे हैं। इस स्थल की सही से पहचान एवं विकास किया जाए तो निश्चित तौर पर यह ग्रामीण पर्यटन का केंद्र बन सकता है और आने वाले देशी, विदेशी पर्यटक बरबस ही इस बौद्ध स्थल को आस्था का केंद्र बना सकते हैं।
अखिल भारतीय भिक्षु संघ के मंडल महामंत्री रुव कृति प्रियदर्शी ने बताया कि शांति का उपदेश सुनने के लिए यहां चंदू नामक एक व्यवसाई ने महात्मा बुद्ध को वर्षावकास में आमंत्रित किया था। जो स्थल झाड़ियों से वर्तमान में घिरा हुआ है। वही बौद्ध विहार था। जहां बुद्ध ने प्रवास के दौरान शांति का उपदेश दिया। पपऊर गांव के दक्षिणी छोर पर प्राचीन काल के टीले देवर हैं। इसी गांव के पूर्व प्रधान प्रतिनिधि रामनाथ गौतम ने 2010 से मांग कर रहे थे कि किले की खुदाई तथा बौद्ध स्थल घोषित किया जाए। उनका लगातार प्रयास रंग लाया और कुशीनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी आर सैमफिल ने मामले को गंभीरता से लेते हुए मौके का निरीक्षण कर खुदाई का आदेश दिया। खुदाई से प्राचीन काल के अवशेष प्राप्त हुए। जिसकी जांच हेतु पुरातत्व विभाग लखनऊ को भेजा गया। पुरातत्व विभाग की टीम ने मौके पर जांच के उपरांत बौद्ध स्थल का स्थान बताया। महात्मा बुद्ध से जुड़ी प्राचीन स्थल पावा पपउर की संभावना बनी। लेकिन इतिहासकारो एवं शासन की उपेक्षा के कारण इस स्थल की वास्तविक पहचान नहीं मिल पाई है। पुरातत्व विभाग की टीम ने टीले की जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी है। लेकिन कोई ठोस कदम उठता नहीं दिख रहा है।
कुशीनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी आर सैंफिल का इस बौद्ध स्थल पर विशेष ध्यान था। जिससे लग रहा था कि यह बौद्ध स्थल अपनी ऐतिहासिक पहचान बनाकर विश्व बौद्ध स्थल मानचित्र पर चिन्हित हो जाएगा। लेकिन उनके स्थानांतरण के बाद स्थिति जस की तस रह गई। लेकिन आर सैंफिल के मुख्यमंत्री का विशेष सचिव बनने के बाद क्षेत्रीय लोगों में उम्मीद जगी है कि इस बौद्ध स्थल के दिन बहुरेंगे।