नई दिल्ली, ,दशहरा का त्यौहार आज है लोग इसके लिए तैयारियां करने में व्यस्त हैं. इस दिन लोग बुराई को मिटाकर अच्छाई पर विजय पाएंगे. बुराई को मिटाने के लिए लोग इस दिन रावण के पुतले का दहन करेंगे. इसके लिए महीनों भर से ही तैयारियां शुरू कर दी जाती है और किसका रावण का पुतला सबसे ऊंचा और लंबा होगा इसकी होड़ होती है, और शायद इसकी तैयारी भी पूरी हो चुकी है. दुनिया का सबसे ऊंचा रावण का पुतला बनकर तैयार हो गया है.
इस बार पंचकूला में रावण का सबसे बड़ा पुतला बनाया गया है. दावा किया जा रहा है कि 210 फुट ऊंचा यह पुतला, दुनिया का सबसे बड़ा रावण का पुतला है. इसे लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में भी जगह मिल चुकी है. करीब 30 लाख रुपए की लागत से बने इस पुतले में इको फ्रेंडली आतिशबाजी भी लगाई गई है. आज इस पुतले का रिमोट कंट्रोल के जरिए दहन किया जाएगा. लेकिन इससे भी दिलचस्प है इस पुतले को धरातल पर उतारने वाले शख्श की कहानी जिसने अपना सब कुछ इस पुतले के लिए दांव पर लगा दिया.
रावण के पुतले को बनाने वाले तेजेन्द्र राणा की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. अंबाला के बराड़ा के रहने वाले तेजेन्द्र राणा बिना किसी आर्थिक मदद के पिछले करीब 31 सालों से इसी तरह रावण का पुतला बनाते आ रहे हैं. इससे पहले वे बराड़ा में हर साल पुतला बनाते आ रहे थे लेकिन इस बार बराड़ा के मैदान में खाली जगह न मिलने के कारण वे अपना पुतला लेकर पंचकुलाआए हैं.
तेजेन्द्र राणा रावण के पुतले को लेकर काफी जुनूनी हैं. उनकी मानें तो रावण का पुतला बनाने के लिए करीब साढ़े 12 एकड़ जमीन बेच चुके हैं. तेजेंद्र लाखों रुपए अपने इस जुनून को पूरा करने के लिए खर्च कर चुके हैं. हालांकि तेजेन्द्र राणा के परिवार ने हमेशा उनका साथ दिया है, उनकी भावनाओं को समझा है.
तेजेंद्र चौहान के परिवार ने भी उनके जुनून को कबूल कर लिया और जब उन्होंने पहली बार रावण के पुतले को तैयार करने के लिए पैसे की कमी होने की वजह से जमीन बेचने की बात की तो उनकी पत्नी मंजू और बेटे दिलावर ने पहले तो उसका विरोध किया. लेकिन बाद में उन्होंने तेजेंद्र के जुनून के सामने घुटने टेक दिए और उसके बाद से वे लगातार तेजेंद्र के साथ खड़े हैं और उन्हें कभी भी रावण के पुतले तैयार करने के लिए जमीन बेचने या फिर अपनी गाढ़ी कमाई लगाने के लिए मना नहीं किया.
तेजेंद्र चौहान ने अपनी गाढ़ी कमाई रावण के पुतले को विश्व में सबसे ऊंचा बनाने और दशहरे के आयोजन को भव्य बनाने में लगा दी. लेकिन अब वे अपनी बची-खुची संपत्ति और पैसा अपने बेटे के हवाले कर चुके हैं और अपने बेटे को जिम का बिजनेस और खेतीबाड़ी का काम भी सौंप चुके हैं. ऐसे में अब उन्हें बस यही चिंता है कि अगर आने वाले सालों में उनके साथ कोई बड़ी संस्था आकर दशहरे के रावण दहन के कार्यक्रम के लिए नहीं जुड़ी तो उनका यह जुनून आर्थिक तंगी की वजह से दम तोड़ देगा. तेजेंद्र चौहान को उम्मीद है कि आने वाले वक्त में कोई संस्था या संगठन उनके साथ जरूर खड़ा होगा. ऐसा होने पर वे कुतुबमीनार से भी ऊंचा रावण का पुतला बनाने के अपने सपने को पूरा कर सकेंगे.