Breaking News

उग्रसेन किले के खंडहरों में दबे हैं, तमाम गुप्त रहस्य

भदोही,काशी प्रयाग के मध्य जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर वरूणा व बसुही नदियों की पवित्र संगम स्थली एवं वाराणसी-जौनपुर तथा भदोही जनपदों के सीमांत पर बसे सरावां गांव अवस्थित उग्रसेन किले के खंडहरों में दफन तमाम ऐतिहासिक व पौराणिक रहस्य आज भी लोगों के लिए पहेलियां बने हुए हैं।

उग्रसेन किले के खंडहरों पर अतिक्रमण कर बनाया गया सत्य साईंदाता मठ तमाम गुप्त रहस्यों को समेटे हुए हैं। दूरदराज से चलकर पहुंचे सैलानियों के लिए मठ आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

दंतकथाओं पर यकीन करें तो विक्रम सदी की शुरुआत के समय कभी महाराज उग्रसेन यहां के राजा हुआ करते थे। मां भद्रकाली के परम भक्त राजा उग्रसेन सुबह सोकर उठने के बाद भद्रकाली धाम में खौलते तेल के कड़ाहे में कूद कर खुद का शरीर मां की सेवा में समर्पित कर देते थे। कहा जाता है कि राजा के समर्पण को देखकर प्रसन्न देवी भद्रकाली प्रगट होकर उनके शरीर का भक्षण करती थी। तत्पश्चात् राजा को जिन्दा करने के बाद सोने की पोटली देकर अंतर ध्यान हो जाया करती थी। जहां से वापस किले पर पहुंचने के बाद महाराज उग्रसेन गरीबों के बीच स्वर्ण दान करते थे। यह सिलसिला अनवरत चलता रहता था।

बताया जाता है कि एक दिन राज परिवार के सोकर उठने के पहले ही शाही महल पूरी तरह जमींदोज हो गया, जिसमें राज परिवार के लगभग सभी सदस्य जिंदा दफन हो गए। किले के जमींदोज होने के बाद राज परिवार की तमाम परंपराएं व रहस्य किले के खंडहरों में दबकर आज भी लोगों के लिए पहेलियां बने हुए हैं।

वर्ष 1980 के दशक में एक फकीर उग्रसेन के खंडहरों पर पहुंचा और यहां अड्डा जमा कर बैठ गया। स्थानीय लोगों की मदद से खंडहरों पर एक विशालकाय झोपड़ी का निर्माण हुआ। बताया जाता है कि फकीर के रहन-सहन व क्रियाकलाप से स्थानीय लोग काफी प्रभावित हुए। इसके बाद शुरू हुआ आकाश वृत्ति(चंदे) का दौर जो बढ़ता ही गया। कुछ लोगों ने श्रमदान कर किले के खंडहरों की पुरानी ईटों को जोड़ कर टीले पर सत्यसाईं दाता मठ का निर्माण शुरू कर दिया। इस बीच क्षेत्र के कुछ संभ्रांत लोगों की आर्थिक मदद से देखते ही देखते भव्य मठ का निर्माण हो गया। लगभग दो दशक तक मठ में रहकर खुद के चमत्कारिक रहस्यों से लोगों के दिलों दिमाग पर छाप छोड़ने वाला फकीर अचानक इस दुनिया से अलविदा हो गया। उसकी इच्छा के अनुरूप शव को उसकी गद्दी के नीचे मठ में ही दफन कर दिया गया। फकीर के दुनिया से जाने के बाद इन दिनों मठ पर अराजक तत्वों का कब्जा बना हुआ है।

स्थानीय लोगों की मानें तो किले के खंडहरों के नीचे तमाम पुरातात्विक सभ्यताएं एवं राज खजाना दफन है, जिससे पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पूरी तरह अनजान बना हुआ है। बताया जाता है कि लगभग आधा दशक पहले पुरातत्वविदों की टीम ने स्थलीय निरीक्षण कर जांच पड़ताल की थी। निरीक्षण कर लौटने के बाद अधिकारियों ने पुनः वापस लौटने की जोखिम मोल नहीं ली। जिसके परिणाम स्वरूप आज भी यह ऐतिहासिक खंडहर तमाम गुण रहस्यों को समेटे बैठा है। स्थानीय निवासी डॉक्टर बाबूलाल ने बताया कि पुरातत्व संरक्षण विभाग खंडहरों की खुदाई कर जांच शुरू करें तो विक्रम सदी की शुरुआत के तमाम रहस्य व मान्यताएं उभर कर सामने आ सकती हैं।