नयी दिल्ली, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाले संविधान संशोधन विधेयक 2017 को राज्यसभा ने बगैर खंड तीन के पारित कर दिया लेकिन उच्च सदन में इस विधेयक के लिए बहुमत नहीं जुटा पाने के कारण सरकार की बड़ी किरकिरी हुयी और सदन में अजीबोगरीब स्थिति भी पैदा हो गयी।
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खंड तीन में आयोग के सदस्यों की संख्या एवं राज्यों के अधिकार आदि का उल्लेख था। इस खंड में कांग्रेस के सदस्यों ने कई संशोधन पेश किये जिनमें से चार पारित हो गये। इसके बाद सत्ता पक्ष के सदस्यों ने इस खंड के विरोध में मतदान कर दिया जिसकी वजह से यह खंड इस विधेयक का हिस्सा नहीं बन सका।
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लोकसभा इसे पिछले संसद सत्र में 10 अप्रैल को ही पारित कर चुकी है पर खंड तीन के हटने के कारण इस विधेयक को फिर से लोकसभा से पारित करना होगा। मतविभाजन में इस विधेयक के समर्थन में 124 मत पड़े जबकि किसी सदस्य ने इसके विरोध में मतदान नहीं किया।
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चार घंटे तक चली बहस के बाद सदन ने मतविभाजन के जरिये संविधान एक सौ तेईसवां संशोधन विधेयक 2017 को खंड तीन के बगैर पारित कर दिया। खंड तीन में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्यों की संख्या एवं राज्यों के अधिकार का उल्लेख था। कांग्रेस सदस्य बी के हरिप्रसाद और हुसैन दलवई के साथ दिग्विजय सिंह ने खंड तीन में संशोधन संख्या 27, 28 , 29 और 30 पेश किये जिस पर मत विभाजन हुआ और इन सदस्यों का संशोधन 54 के मुकाबले 75 मतों से पारित हो गया। इन संशोधनों के जरिये इन सदस्यों ने आयोग को पांच सदस्यीय बनाने एवं इसमें एक महिला और एक अल्पसंख्यक सदस्य को शामिल करने का प्रस्ताव किया था।
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसद चलने के दौरान सदस्याें के सदन में मौजूद रहने की सलाह दिये जाने के बावजूद इस महत्वपूर्ण विधेयक पर चर्चा के दौरान सत्ता पक्ष के अधिकांश सदस्य मौजूद नहीं थे जिसकी वजह से ये संशोधन पारित हो गये लेकिन इसके विपक्ष में पर्याप्त बहुमत नहीं जुटा पाने की वजह से सरकार की किरकिरी हो गयी।
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