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कुंभ में आने का आशीष लेकर संगम से विदा हो रहे कल्पवासी

प्रयागराज, आस्था, विश्वास और संस्कृतियों के संगम में माघ मेला के पांचवें पर्व माघी पूर्णिमा स्नान के साथ शनिवार को संगम की विस्तीर्ण रेती पर संयम, अहिंसा, श्रद्धा एवं कायाशोधन कर रहे कल्पवासियों का कल्पवास समाप्त हो गया और अगले वर्ष कुंभ में आने का गंगा मां से आशीष लेकर घर को विदा हो रहे हैं।

माघ मेला बसाने वाले प्रयाग धर्म संघ के अध्यक्ष एवं तीर्थ पुराेहित राजेन्द्र पालीवाल ने बताया कि माघ मेले में करीब दो लाख कल्पवासी अपने तीर्थ पुरोहितों के शिविर में रहकर पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं।

कल्पवास के दो कालखंड होते हैं। मकर संक्रांति से माघ शुक्लपक्ष की संक्रांति तक बिहार और झारखंड के मैथिल ब्राह्मण कल्पवास करते हैं। दूसरे खण्ड पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक कल्पवास किया जाता है। माघ में कल्पवास ज्यादा पुण्यदायक माना जाता है। इसलिए अधिकांश लोग पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं।

आज कल्पवासियों का कल्पवास पूरा हो गया और कुंभ में आने का गंगा मइया से अशीर्वाद लेकर घर विदा हो रहे हैं। विदा होने से एक दिन पहले शिविरों में नजारा एक दम जुदा दिखलायी पड़ा। आम दिनों में जिन शिविरों में प्रात: पूजा, कथा और प्रवचन होनी रहती थी, दोपहर के समय से गृहस्थी समेटी जा रही थी। कुछ शिविरों में कथा सुनी जा रही थी। शनिवार को सुबह स्नान करने के बाद से ही कलपवासी घर को निकलने लगे।

श्री पालीवाल ने बताया कि कल्पवास के साथ पवित्र माघ मास का स्नान भी समाप्त हो गया। धर्मशास्त्रों में कल्पवास को आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए जरूरी बताया गया है। यह मनुष्य के लिए आध्यात्म की राह का एक पड़ाव हैए जिसके जरिए स्वनियंत्रण एवं आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है। हर वर्ष श्रद्धालु एक महीने तक संगम के विस्तीर्ण रेती पर तंबुओं की आध्यात्मिक नगरी में रहकर अल्पाहार और तीन समय गंगा स्नानए ध्यान एवं दान करके कल्पवास करते है।

उन्हाेंने बताया कि संगम में कल्पवास शुरू करने से पहले कल्पवासी शिविर के मुहाने पर तुलसी और शालिग्राम की स्थापना कर पूजा करते हैं। कल्पवासी परिवार की समृद्धि के लिए अपने शिविर के बाहर जौ का बीज रोपित करता है। कल्पवास समाप्त होने पर तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं और शेष को अपने साथ ले जाते हैं। कल्पवासी शिविरों में स्नान के बाद हवनए पूजन और यज्ञ से पूरा वातावरण धार्मिक वातावरण और महक से गमक रहा है। इसके बाद सभी अपने अपने घरों को प्रस्थान शुरू कर दिए हैं।

श्री पालीवाल ने मत्सयपुराण का हवाला देते हुए बताया कि कल्पवास का अर्थ संगम तट पर निवास कर वेदाध्यन और ध्यान करना। इस दौरान कल्पवास करने वाले को सदाचारी, शांत चित्त वाला और जितेन्द्रीय होना चाहिए। कल्पवासी को तट पर रहते हुए नित्यप्रति जप. तपए हाेम और दान करना चाहिए।

उन्होंने बताया कि निश्चित रूप से यहां ऊर्जा का सतत प्रवाह बहता रहता है। देश-दुनिया से श्रद्धालु बिना आमंत्रण और निमंत्रण पर एक निश्चित तिथि पर बिन बुलाए पहुंचते है। यही तो यहां की आध्यात्मिक शक्ति है। भारत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं वैचारिक विविधताओं को एकता के सूत्र में पिरोने वाला माघ मेला भारतीय संस्कृति का द्योतक है। माघ मेले को लघु भारत भी कहा जा सकता है। यहां विभिन्न राज्यों की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है।