स्ंसद को भारत की जनता का चेहरा कहा जाता है क्योंकि सांसद जनता द्वारा चुने गये, जनता के प्रतिनिधि होतें हैं जो जनता की समस्याओं और मुद्दों को संसद मे उठाते हैं। जनता अपने चुने हुये सांसदों पर यह विष्वास करती है कि हमारे प्रतिनिधि हमारी समस्याओं को भली प्रकार जानते हुये उसके निराकरण का ईमानदारी से प्रयास करेंगे।
लेकिन भारत की जनता का दुर्भाग्य यह है कि जैसा संविधान मे लिखा गया है वैसा हो नही पा रहा है। सच्चाई यह है कि वर्तमान संसद जनता का सही प्रतिनिधित्व नही करती है। क्योंकि जहां एक ओर हमारे देष की 85 प्रतिषत जनता मूलभूत सुविधाओं से वंचित है वहीं हमारी सोलहवीं लोकसभा के 82 प्रतिषत सांसद करोड़पति हैं। जनता और जन प्रतिनिधियें के बीच यह कितना बड़ा विरोधाभास है। वर्तमान लोकसभा के कुल 543 सांसदों मे से 130 सांसद ऐसे हैं जो देष के किसी न किसी राजनैतिक परिवार से ताल्लुक रखतें हैं। अगर हम इनकी रिष्तेदारी पर नजर डालें तो इन 130 राजनेताओं के परिवारों के सांसदों में राजनेताओं के 69 बेटे, 11 बेटियां और 10 भाई हैं। सांसद व विधायकों की 10 धर्मपत्नियां भी सांसद हैं। बचे हुये सांसद राजपरिवारों के निकट रिष्तेदार जैसे- ताऊ, चाचा, चचेरे भाई बहन और बहू इत्यादि हैं।
एसोसियेषन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म के अनुसार 543 सांसदों मे से 34 प्रतिषत सांसदों का अपराधिक इतिहास है। जबकि मात्र 10 साल पहले 14 वीं लोकसभा मे केवल 24 प्रतिषत सांसद ही आपराधिक मामलों के आरोपी थे। सोलहवीं लोकसभा मे जहां 82 प्रतिषत सांसद करोड़पति हैं वहीं 14 वीं लोकसभा मे महज 30 प्रतिषत सांसद ही करोड़पति थे। दोबारा चुनाव लड़ने वाले सांसदों की सम्पत्ति मे तो आष्चर्यजनक तरीके से वृद्धि हुयी है। पांच साल के भीतर दोबारा चुनाव लड़ने वाले सांसदों की सम्पत्ति मेे 289 प्रतिषत की वृद्धि बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों को भी मात दे रहीं है। इसलिये अगर कोई भारत देष की वर्तमान लोकसभा के 543 सांसदों की आर्थिक स्थिति और उनके जीवन स्तर को देखकर भारत की जनता की हैसियत का अनुमान लगाता है तो यह एक बड़ी चूक होगी। क्योंकि सच्चाई यह है कि दोनों के बीच हर स्तर पर भारी असमानता है। ऐसी स्थिति मे जनता अपने कल्याण के लिये लोकसभा मे चुनकर भेजे गये प्रतिनिधियों से क्या उम्मीद कर सकती है? और उसकी उम्मीदें कितनी पूरी होंगी, विचार करने की बात है।