क्या है एम वाई समीकरण, यादव और मुस्लिम में इसका क्या है प्रभाव ?

राजनीति में एमवाई समीकरण की खूब चर्चा होती है. खास तौर पर, उत्तर प्रदेश और बिहार में ये समीकरण चुनाव परिणाम में बड़ी भूमिका निभाता है।
यादव और मुस्लिम दोनों समुदाय यूपी और बिहार के दो सबसे बड़े समुदाय हैं. दोनों राज्यों में यादव समुदाय की आबादी लगभग 15 फीसदी है, जबकि मुस्लिम आबादी करीब 18 फीसदी है. ये दोनों मिलकर करीब 33 फीसदी वोट बैंक बनाते हैं, जिनपर सबसे व्यापक प्रभाव यूपी में समाजवादी पार्टी का और बिहार में राजद का माना जाता है. यह समीकरण कई विधानसभा और लोकसभा सीटों पर निर्णायक साबित हो रहा है। यह राष्ट्रीय जनता दल , समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियों की चुनावी सफलता का मुख्य कारण रहा है। मुस्लिम वर्ग पारंपरिक रूप से ‘धर्मनिरपेक्ष’ दलों, जैसे सपा, राजद, के प्रति निष्ठा रखते हैं, जिससे उनका एक बड़ा वोट बैंक बनता है।
यह बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव के समय से एक मजबूत गठजोड़ रहा है, जो उन्हें सत्ता में बनाए रखने में मदद करता रहा है. बिहार विधानसभा चुनाव में राजद कुल 143 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. 2020 के चुनाव में राजद ने 144 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. राजद के टिकट बंटवारे में इस समुदाय का असर दिख रहा है. राजद ने इस बार के चुनाव में 143 में से 51 सीटों पर यादव उम्मीद उतारे हैं. इसके बाद दूसरा सबसे बड़ा वर्ग है मुस्लिम. पार्टी ने 19 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है. इस तरह 143 में से 70 उम्मीदवार यानि लगभग आधे उम्मीदवार आरजेडी ने एमवाई यानी मुस्लिम-यादव समीकरण के तहत उतारकर अपने वोट बैंक पर पूरी पकड़ बनाये रखने की कोशिश की है.
2020 में राजद ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसने 58 सीटों पर यादव कैंडिडेट उतारे थे. यानी पार्टी ने 14 फीसदी आबादी वाले समुदाय को 40 फीसदी टिकटें दी थी. हालांकि इस बार उसने अपने यादव उम्मीदवारों की संख्या में सात की कमी की है. 2020 में राजद ने 17 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन, इस बार इनकी हिस्सेदारी बढ़कर 19 हो गई है.





