एक राजा ने अपने शौर्य के जरिए अनेक साम्राज्यों को जीतते हुए चक्रवर्ती सम्राट होने का गौरव पाया था। किंतु अब सम्राट के जीवन में सांझ उतरने लगी थी। शक्ति कम हो रही थी, चिंताएं बढ़ रही थीं। एक दिन सम्राट मन की शांति की तलाश में वेश बदलकर अपने अश्व पर बैठ अकेले ही वन की ओर निकल पड़े। वन में पहुंचकर उन्हें एक जगह अचानक बंसी की सुरीली धुन सुनाई पड़ी। बरबस ही उन्होंने अश्व को बंसी की धुन की दिशा में मोड़ लिया।
कुछ दूर जाने पर उन्होंने देखा कि पहाड़ी झरने के पास, वृक्षों के झुरमुट तले एक युवा चरवाहा मस्ती में नाचते हुए बंसी बजा रहा है। पास ही उसकी भेड़ें चर रही थीं। सम्राट ने उससे कहा – ‘तू तो ऐसे आनंदित है, जैसे कोई साम्राज्य मिल गया हो!” इस पर चरवाहा हंसते हुए बोला – ‘अरे भाई, दुआ करो कि भगवान मुझे कोई साम्राज्य न दे, क्योंकि सम्राट तो मैं अभी हूं। साम्राज्य मिलने पर भी क्या कोई सम्राट रह पाता है?”
उसकी बात सुनकर सम्राट हैरान रह गए। उनकी हैरानी भांप चरवाहे युवक ने कहा – ‘दरअसल व्यक्ति भौतिक सुख-संपदा से नहीं, अपनी स्वतंत्रता से सम्राट होता है। मैं सोचता हूं कि भला मेरे पास ऐसी कौन-सी मौलिक वस्तु नहीं है, जो सम्राट के पास है। प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य को निहारने के लिए मेरे पास आंखें हैं। परमात्मा के स्वरूप के बारे में चिंतन हेतु मेरे पास मन है। प्रभु भक्ति के लिए मेरे पास निर्मल हृदय है। सूरज जितनी रोशनी मुझे देता है, उतनी ही सम्राट को देता है। चांद भी मुझ पर अपनी उतनी ही चांदनी बरसाता है, जितनी कि सम्राट पर। प्रकृति के आंगन में खिले खूबसूरत फूलों की सुगंध भी मुझे सम्राट से कम नहीं मिलती। फिर सम्राट के पास ऐसा क्या है, जो मेरे पास नहीं?हां, मेरे पास कुछ बेकार की चीजें जरूर नहीं हैं, जिन्हें बेचारे सम्राट ढोते रहते हैं। मेरे पास नहीं हैं चिंताएं और मैं ये चाहता भी नहीं हूं। पर मेरे पास ऐसा बहुत कुछ है, जो सम्राट के पास भी नहीं है। जैसे मेरे पास है – मेरी स्वतंत्रता, मेरा निर्मल आनंद, मेरा प्रभु प्रेम।”
यह सुन सम्राट ने उससे कहा – ‘प्रिय युवक, तुम सच कहते हो। अपने गांव में जाकर सबसे कहना कि इस राज्य के सम्राट भी तेरे इस सत्य से पूर्णत: सहमत हैं।” यह कहकर सम्राट वापस लौट पड़े।