पदोन्नति में आरक्षण विषय पर न्यायपालिका द्वारा किया गया यह प्रश्न कि सरकार यह बताये कि संबंधित उच्च पदों पर आरक्षित वर्गो का पर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नही है, वास्तव मे भ्रमित करने वाला है।
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सबसे पहली बात कि किस प्रकार के आंकड़े हमारी न्यायपालिका चाहती है? क्या किये जा रहे सर्वे काफी नही है और यदि नही तो फिर जातीय आधारित जनगणना कराई जाए,ताकि इन वर्गों की वास्तविक स्तिथि का पता लगाया जा सकेगा। लेकिन हमारा विकसित समाज , नही चाहता कि जाति केआधार पर किसी भी प्रकार के सर्वे किये जायें।
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पदोन्नति में आरक्षण अथवा जाति आधारित जनगणना जातिवाद को बढ़ावा देगी,ऐसा मानने वाले लोग अक्सर भूल जाते है कि जाति इस देश मे हजारो साल से मौजूद है और वह किसी भी प्रकार से कम नही हुई है। आरक्षण के नाम पर नाक- भौं सिकोड़ने वालो को यह जान लेना चाहिए कि यदि आरक्षण गलत है,तो सबसे पहले जाति को समाप्त करना होगा।केवल राजनीतिक स्तर पर ही नही वरन सामाजिक स्तर पर भी।
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साधारण शब्दो मे कहा जाए, तो आरक्षण श्रेणीबद्ध समाज को समानता पर आधारित समाज मे बदलने का संविधान के माध्यम से किया गया कानूनी प्रावधान है।हालांकि यह बात जरूर है कि इसमें अभी तक सरकारी सेवाओं में उच्च पदों पर स्थापित सवर्ण समाज के वर्चस्व को जरूर खतरा है।
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सवर्ण समाज से आने वाले हमारे कुछ साथियों का मानना है कि पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने से इन दलित आदिवासी वर्गो से आने वाला व्यक्ति उनसे पहले प्रमोशन पा जाएगा,तो ऐसा भी नही है।संविधान में स्पष्ट रूप में लिखा गया है कि इन वर्गों से आने वाले व्यक्ति को मापदंडो में कुछ छूट दी जाएगी,न कि सभी मापदंड ही समाप्त किये जायेंगे।
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जहां तक मेरिट का सवाल है,तो मेरिट तो एकलव्य के पास भी थी और जो अर्जुन से भी तेज तर्रार धनुर्धर था,लेकिन द्रोणाचार्य ने एकलव्य की मेरिट को नही वरन एकलव्य की जाति को देखा था।इसी प्रकार मेरिट शम्बूक ऋषि के पास भी थी,लेकिन राम ने केवल उनकी नीच जाति को ही ध्यान में रखकर ही उनकी हत्या कर दी थी।
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